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श्रम साधक संत रविदास की जन्मस्थली वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर में संत रविदास मंदिर है। संत रविदास की श्रम साधना ऐसी फलीभूत हुई कि वह श्रद्धालुओं के लिए भगवान के रूप में पूजे जाने लगे। श्रद्धालुओं की श्रद्धा ऐसी है कि उन्होंने अपने दान से गुरु की जन्मस्थली पर भव्य मंदिर बनाया और यह श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के बाद काशी का दूसरा स्वर्ण मंदिर बन गया। वाराणसी के सीरगोवर्धन स्थित संत रविदास का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। यहां प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक दर्शन करने के लिए पहुंच चुके हैं।
संत रविदास मंदिर में 130 किलो सोने की पालकी रखी हुई है। मंदिर के शिखर का कलश और मंदिर में मौजूद संत रविदास की पालकी से लेकर छत्र तक सब कुछ सोने का है। श्रद्धालुओं के दान से संत के मंदिर के शिखर को स्वर्ण मंडित कराया गया है। इसके अलावा 35 किलो का सोने का स्वर्ण दीपक बनवाया गया। इसमें अखंड ज्योति जल रही है। इस दीपक में एक बार में पांच किलोग्राम घी भरा जाता है। कुल मिलाकर इस पूरे मंदिर में 200 किलो से ज्यादा सोना मौजूद है। जो हर साल भक्तों के दान से बढ़ता ही जा रहा है।
संत रविदास जी का जन्म वाराणसी के पास के गांव में हुआ था। ऐसा माना जाता है इनका जन्म लगभग सन 1450 में हुआ था। उनकी माता का नाम श्रीमति कलसा देवी और पिता का नाम श्रीसंतोख दास जी था। संत रविदास दूसरों साधु-संतों की बहुत सेवा करते थे। वह लोगों के लिए जूते-चप्पल बनाने का काम करते थे। एक कथा के अनुसार रविदास जी अपने साथी के साथ एक दिन खेल रहे थे। खेलने के बाद अगले दिन वो साथी नहीं आता है तो रविदास जी उसे ढूंढ़ने चले जाते हैं।
फिर उन्हें पता चलता है कि उसकी मृत्यु हो गई। ये देखकर रविदास जी बहुत दुखी होते हैं और अपने मित्र को बोलते हैं कि उठो ये समय सोने का नहीं है, मेरे साथ खेलो। इतना सुनकर उनका मृत साथी खड़ा हो जाता है। कहा जाता है कि संत रविदास जी को बचपन से ही आलौकिक शक्तियां प्राप्त थी। लेकिन जैसे-जैसे समय निकलता गया उन्होंने अपनी शक्ति भगवान राम और कृष्ण की भक्ति में लगाई। इस तरह धीरे-धीरे लोगों का भला करते हुए वो संत बन गए।
मंदिर पहुंचने का निकटतम रेलवे स्टेशन वाराणसी है। आप यहां से मंदिर तक जाने के लिए ई रिक्शा या ऑटो ले सकते हैं।
समय : सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक
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