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व्रत एवं त्यौहार

सावन मास के व्रत-त्योहार की लिस्ट
सावन मास के व्रत-त्योहार की लिस्ट
श्रावण मास को शिव आराधना का सबसे पवित्र समय माना गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष 2025 में श्रावण माह की शुरुआत 11 जुलाई, शुक्रवार से हो रही है और समापन 9 अगस्त को रक्षाबंधन के साथ होगा।
देवशयनी एकदशी की कथा
देवशयनी एकदशी की कथा
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। यह दिन केवल व्रत और उपवास का ही नहीं, बल्कि धार्मिक जागरूकता और मानवीय मूल्यों की मिसाल का भी है।
देवशयनी एकादशी पर राशि अनुसार जपिए ये मंत्र
देवशयनी एकादशी पर राशि अनुसार जपिए ये मंत्र
सनातन धर्म में देवशयनी एकादशी का अत्यधिक महत्व है। यह तिथि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है और 2025 में यह दिन 6 जुलाई को मनाया जाएगा। इस दिन से चातुर्मास का शुभ आरंभ भी होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और इस चार महीने की अवधि में शुभ कार्यों पर विराम लग जाता है।
देवशयनी एकादशी पर क्यों जलाते हैं चौमुखी दीपक
देवशयनी एकादशी पर क्यों जलाते हैं चौमुखी दीपक
सनातन धर्म में हर पर्व, हर परंपरा के पीछे गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक तात्पर्य छिपा होता है। देवशयनी एकादशी, जो आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है, 2025 में 6 जुलाई को मनाई जाएगी। इस दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है और भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं।
देवशयनी एकादशी पर बन रहे ये शुभ योग
देवशयनी एकादशी पर बन रहे ये शुभ योग
2025 में देवशयनी एकादशी 6 जुलाई, रविवार को मनाई जाएगी। यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी बेहद फलदायी रहने वाला है। इस वर्ष देवशयनी एकादशी पर चार अत्यंत शुभ योग, त्रिपुष्कर योग, शुभ योग, साध्य योग और रवि योग का संयोग बन रहा है।
देवशयनी एकादशी से होगी चातुर्मास की शुरुआत
देवशयनी एकादशी से होगी चातुर्मास की शुरुआत
हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है, जो सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र और विशेष मानी जाती है। 2025 में यह तिथि 6 जुलाई को पड़ रही है, और इसी दिन से चातुर्मास की पावन अवधि की शुरुआत भी हो जाएगी।
देवशयनी एकादशी 2025 कब है
देवशयनी एकादशी 2025 कब है
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। यह तिथि न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका संबंध चातुर्मास के शुभारंभ से भी है।
मंगला गौरी व्रत क्यों रखा जाता है
मंगला गौरी व्रत क्यों रखा जाता है
सावन का महीना हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह पूरा महीना भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित होता है। इसी मास के मंगलवार को रखा जाने वाला मंगला गौरी व्रत विशेष रूप से महिलाओं के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है।
सावन माह मंगला गौरी व्रत तिथियां
सावन माह मंगला गौरी व्रत तिथियां
हिंदू धर्म में मंगला गौरी व्रत का विशेष महत्व होता है। यह व्रत मुख्य रूप से सुहागिन स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की मंगलकामना के लिए रखा जाता है।
मंगला गौरी व्रत आरती
मंगला गौरी व्रत आरती
सावन मास के प्रत्येक मंगलवार को रखा जाने वाला मंगला गौरी व्रत विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह व्रत देवी पार्वती के गौरी स्वरूप को समर्पित होता है, जो स्त्री जीवन में अखंड सौभाग्य, सुख-शांति और दांपत्य प्रेम की प्रतीक मानी जाती हैं।
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