मां सरस्वती को हिंदू धर्म में ज्ञान की देवी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सृष्टि से उदासी और अज्ञानता को समाप्त करने के लिए ही ब्रह्माजी ने मां सरस्वती की रचना की थी। माना जाता है कि, मां सरस्वती का आशीर्वाद जिस व्यक्ति पर होता है, उसके जीवन में कोई अभाव नहीं रहता है, और उसके घर में मां सरस्वती के साथ धन की देवी लक्ष्मी भी हमेशा निवास करती हैं। ऐसे में मां सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए सरस्वती चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए। सरस्वती चालीसा, मां सरस्वती को संबोधित एक हिंदू भक्ति भजन (स्तोत्र ) है। इसमें चालीस चौपाइयां (भारतीय काव्य में चौपाइयां) हैं। यह अवधी भाषा में लिखी गई है। सरस्वती चालीसा के लेखक रामसागर है, जिनका उल्लेख चालीसा में किया गया है। रोजाना सुबह विशेष रूप से गुरुवार के दिन मां सरस्वती की पूजा में सरस्वती चालीसा का पाठ जरूर पढ़ें। इससे आपके जीवन में सकारात्मक और चमत्कारिक बदलाव आएंगे। परीक्षा से पहले या नई चीजों के बारे में ज्ञान प्राप्त करने के लिए सरस्वती चालीसा का पाठ करना अच्छा होता है। यह चालीसा ज्ञान या रचनात्मक कार्यों की खोज करने वाले लोगों को आशीर्वाद देती है। यह व्यक्ति को आलस्य और अज्ञानता से मुक्त कर सकती है। मां सरस्वती की पूजा में सरस्वती चालीसा का पाठ करने के कई लाभ होते हैं, जो कुछ इस प्रकार है...
१) सरस्वती चालीसा का पाठ करने से ज्ञान के मार्ग खुलते हैं।
२) मन शांत एवं एकाग्रचित्त रहता है। इसलिए खासकर विद्यार्थियों को इसका पाठ जरूर करना चाहिए।
३) कुंडली में बुध ग्रह मजबूत होता है। बुध ग्रह बुद्धि, वाणी, संगीत, व्यापार को प्रदर्शित करते हैं।
४) व्यक्ति का तेज बढ़ता है। उसे हर क्षेत्र में यश और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
५) संतानहीन को गुणवान व सुंदर संतान की प्राप्ति होगी।
॥ ।। दोहा ।। ॥
जनक जननि पद कमल रज, निज मस्तक पर धारि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
रामसागर के पाप को, मातु तुही अब हन्तु॥
॥ चौपाई ॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥
जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुजधारी माता। सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती। जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥
तबहि मातु ले निज अवतारा। पाप हीन करती महि तारा॥
बाल्मीकि जी थे हत्यारा। तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामायण जो रचे बनाई। आदि कवी की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता। तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्धाना। भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा। केवल कृपा आपकी अम्बा॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करै अपराध बहूता। तेहि न धरइ चित सुन्दर माता॥
राखु लाज जननी अब मेरी। विनय करूं बहु भाँति घनेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
मधु कैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥
समर हजार पांच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥
मातु सहाय भई तेहि काला। बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता। छण महुं संहारेउ तेहि माता॥
रक्तबीज से समरथ पापी। सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा। बार बार बिनवउं जगदंबा॥
जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा। छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥
भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई। रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा। सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना। निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी। जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी। नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित जो मारन चाहै। कानन में घेरे मृग नाहै॥
सागर मध्य पोत के भंगे। अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई। संशय इसमें करइ न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई। सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥
करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥
धूपादिक नैवेद्य चढावै। संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करै हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें शत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥
करहु कृपा भवमुक्ति भवानी। मो कहं दास सदा निज जानी॥
॥ ।। दोहा ।। ॥
माता सूरज कान्ति तव, अंधकार मम रूप।
डूबन ते रक्षा करहु,परूं न मैं भव-कूप॥
बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि,सुनहु सरस्वति मातु।
अधम रामसागरहिं तुम, आश्रय देउ पुनातु ॥
देवी आराधना के पावन पर्व नवरात्रि में नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा-उपासना से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं।
दस महाविद्याओं में से तांत्रिकों की मुख्य देवी के रूप में तारा की आराधना का विधान हैं।
देवी अवतार के दस महाविद्याओं का संबंध भगवान विष्णु के दस अवतारों से है। इन्हीं में वैभव और ऐश्वर्य की देवी शताक्षी और शाकम्भरी नाम से प्रसिद्ध भुवनेश्वरी देवी भी है।
दस महाविद्याओं में भैरवी की उपासना का बड़ा महत्व है। भैरवी की पूजा अर्चना करने से बंधनों से मुक्ति के साथ व्यापार में बढ़ोतरी और धन सम्पदा में लाभ होता है।