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बैजनाथ मंदिर हिमाचल की खूबसूरत वादियों में बसा प्रसिद्ध शिव धाम है। यहां भगवान शिव की 'हीलिंग के देवता' के रुप में पूजा की जाती है। बैजनाथ अथवा बैद्यनाथ भगवान शिव के अवतारों में से एक हैं। यहां स्थित लिंग को 'कामना लिंग' भी कहते हैं। इस अवतार में, महान भगवान अपने भक्तों को सभी दुखों और पीड़ाओं से छुटकारा दिलाते हैं। यह मंदिर सभी शिव भक्तों के लिए अत्यधिक महत्व रखता है और अत्यंत पवित्र माना जाता है। किंवदंती है कि इस मंदिर के जल में औषधीय गुण पाए जाते हैं, जिसे पीने से गंभीर से गंभीर बीमारियां ठीक हो जाती हैं। यह मंदिर कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर बैजनाथ में एक मनोहारी स्थल पर स्थित है।
बैजनाथ मंदिर का निर्माण 1204 ईं, में दो स्थानीय व्यापारियों, आहुका और मन्युका ने करवाया था, जो भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। पालमपुर से मात्र 16 किमी की दूरी पर स्थित, यह प्राचीन मंदिर एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान की कोमल कृपा से परम शांति और अखंड शांति प्राप्त की जा सकती है। यह भारत के उन बहुत कम मंदिरों में से एक है जहां भगवान शिव और राक्षस राजा रावण दोनों की पूजा की जाती है।
बैजनाथ मंदिर हिमाचल प्रदेश के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। इस मंदिर के बारे में कई किवदंतियां प्रचलित है। इनमें से एक सबसे ज्यादा प्रचलित है और वो यह है कि हिमाचल प्रदेश के धौलाधार पर्वत श्रृंखला के प्रांगण में स्थित भगवान शिव के इस बैजनाथ मंदिर की स्थापना किसी और ने नहीं बल्कि स्वयं रावण ने की है, रावण ने हिमालय के कैलाश पर्वत पर भगवान शिव को खुश करने के लिए तपस्या की था, जब तपस्या का कोई फल नहीं मिला तो उसने घोर तपस्या शुरु कर दी। अंत में अपना सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर भगवान शिव को अर्पित करना चाहा। इस मौके पर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने रावण का हाथ पकड़ लिया। फिर रावण से वर मांगने को कहा। इसके बाद रावण ने खुद को अत्यंत बलशाली बना देने की भी प्रार्थना की। इस पर शिवजी ने वर दे दिया।
शर्त ये थी कि दोनों में कोई भी शिवलिंग जमीन पर नहीं रखना था, क्योंकि शिवलिंग जहां रखा जाएगा वहां स्थापित हो जाएगा। ये देखकर देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि कुछ चमत्कार करें जिससे रावण शिवलिंग को लंका न ले जा पाएं। इसके बाद माया ऐसा रची कि किसी कारणवश रावण ने शिवलिंग बैजू नाम के चरवाहे को पकड़ा दिए और कहा कि उसे जमीन पर न रखें, लेकिन उसके वजन से परेशान होकर चरवाहे ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। इस तरह शिवलिंग स्थापित हो गए और यह मंदिर बैजनाथ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस मंदिर के प्रागंण में कई छोटे मंदिर और नंदी बैल की मूर्ति भी है। वही नंदी के कान में भक्तगण अपनी मन्नत मांगते हैं।
बैजनाथ मंदिर के निर्माण को लेकर एक दूसरी मान्यता है कि द्वापर युग में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर का निर्माण किया, लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह प्रमाणित नहीं होता है। क्योंकि इस मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थर के द्वारा किया गया है।
मंदिर की दीवारों पर कई प्रतिमाएं बनाई गई है। इनमें से कुछ मूर्तियां एवं प्रतिमाएं वर्तमान मंदिर से पहले बनी हुई है। मंदिर में भगवान गणेश, भगवान हरिहर, कल्याणसुंदर, और भगवान शिव द्वारा असुर अंधक की हार की मूर्तियां है।
बैजनाथ मंदिर में दशहरे का त्योहार नहीं मनाया जाता है। इसके पीछे भी एक किंवदंती प्रचलित है। बताया जाता है कि रावण शिव का प्रिय भक्त था। इसलिए यहां रावण का पुतला नहीं जलाया जाता, एक बार कुछ लोगों ने ऐसा प्रयास किया था, लेकिन उसके बाद यहाँ कई तरह की प्राकृतिक आपदा आई, जिससे लोगों को परेशानी हुई। इसके बाद यहां पर दशहरा मनाने की परंपरा बंद हो गई।
बैजनाथ मंदिर में महाशिवरात्रि सक्रिय रुप से मनाई जाती है और देशभर से लोग पूरे उत्साह और उमंग के साथ इस त्योहार को मनाने आते हैं। महाशिवरात्रि का पर्व यहां भारी उत्साह, श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दौरान यहां धर्म और संस्कृति पर आधारित मेले का आयोजन किया जाता है।
हवाई मार्ग - यहां का निकटतम हवाई अड्डा गग्गल एयरपोर्ट है, जो केवल 37 किमी दूर है। गग्गल हवाई अड्डे से प्रमुख शहरों के लिए नियमित रुप से उड़ाने रवाना होती है। यहां से आप टैक्सी के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग - यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन अंदौरा है जो लगभग 65 किमी दूर है। यहां से आप टैक्सी के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग - बैजनाथ के लिए सभी प्रमुख शहरों से बसें चलती है, और निकटतम बस स्टॉप बैजनाथ है, जो मंदिर से केवल 4 मिनट की पैदल दूरी पर है।
मंदिर का समय- सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक।
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