मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर करें इस स्तोत्र का पाठ

मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर किस स्तोत्र के पाठ से माता लक्ष्मी होंगी प्रसन्न, यहां पढ़े स्तोत्र



मार्गशीर्ष पूर्णिमा इस वर्ष  15 दिसंबर को मनाई जा रही है। यह पर्व हिन्दू धर्म में लक्ष्मीनारायण की पूजा का एक पवित्र और शुभ अवसर है। इस दिन चन्द्रमा अपनी सभी कलाओं से परिपूर्ण रहता है इससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और चंद्र देव की उपासना का विधान है, जिससे जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है। इस पवित्र दिन पर पूजा-अर्चना और दान करने से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। पूजा के दौरान अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए, यह माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का एक बेहद सरल तरीका है। आइए जानते हैं मार्गशीर्ष पूर्णिमा के महत्व और पूजा के दौरान अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने के विधान के बारे में।


कब है मार्गशीर्ष पूर्णिमा 2024? 


पंचाग के अनुसार, साल 2024 में मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि की शुरूआत 14 दिसंबर को शाम 5 बजकर 13 मिनट पर हो रही है जो 15 दिसंबर दोपहर 2 बजकर 35 मिनट तक जारी रहेगी। ऐसे में 15 दिसंबर को मार्गशीर्ष की पूर्णिमा मनाई जाएगी। इसी दिन व्रत भी रखा जाएगा साथ ही इस दिन स्नान, दान और पूजन के साथ-साथ पितरों का भी तर्पण किया जाएगा। 

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र के पाठ से होने वाले लाभ 


मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए। इससे कई लाभ होते हैं जैसे- 

  • मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति: अष्टलक्ष्मी स्तोत्र के पाठ से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
  • धन से जुड़ी परेशानी दूर होना: इस स्तोत्र के पाठ से धन से जुड़ी परेशानियां दूर होती हैं और जीवन में आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
  • व्यवसाय में सफलता प्राप्ति: अष्टलक्ष्मी स्तोत्र के पाठ से व्यवसाय में सफलता प्राप्त होती है और जीवन में प्रगति होती है।
  • सुख-समृद्धि में वृद्धि: इस स्तोत्र के पाठ से जीवन में सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है और मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है।

॥ अष्टलक्ष्मी स्तोत्र॥


॥ आदिलक्ष्मि ॥
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि,चन्द्र सहोदरि हेममये
मुनिगणमण्डित मोक्षप्रदायनि,मञ्जुळभाषिणि वेदनुते।
पङ्कजवासिनि देवसुपूजित,सद्गुण वर्षिणि शान्तियुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,आदिलक्ष्मि सदा पालय माम्॥1॥
॥ धान्यलक्ष्मि ॥
अहिकलि कल्मषनाशिनि कामिनि,वैदिकरूपिणि वेदमये
क्षीरसमुद्भव मङ्गलरूपिणि,मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि,देवगणाश्रित पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,धान्यलक्ष्मि सदा पालय माम्॥2॥
॥ धैर्यलक्ष्मि ॥
जयवरवर्णिनि वैष्णवि भार्गवि,मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये
सुरगणपूजित शीघ्रफलप्रद,ज्ञानविकासिनि शास्त्रनुते।
भवभयहारिणि पापविमोचनि,साधुजनाश्रित पादयुते
जय जय हे मधुसूधन कामिनि,धैर्यलक्ष्मी सदा पालय माम्॥3॥
॥ गजलक्ष्मि ॥
जय जय दुर्गतिनाशिनि कामिनि,सर्वफलप्रद शास्त्रमये
रधगज तुरगपदाति समावृत,परिजनमण्डित लोकनुते।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित,तापनिवारिणि पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,गजलक्ष्मी रूपेण पालय माम्॥4॥
॥ सन्तानलक्ष्मि ॥
अहिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि,रागविवर्धिनि ज्ञानमये
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि,स्वरसप्त भूषित गाननुते।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर,मानववन्दित पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,सन्तानलक्ष्मी त्वं पालय माम्॥5॥
॥ विजयलक्ष्मि ॥
जय कमलासनि सद्गतिदायिनि,ज्ञानविकासिनि गानमये
अनुदिनमर्चित कुङ्कुमधूसर,भूषित वासित वाद्यनुते।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित,शङ्कर देशिक मान्य पदे
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,विजयलक्ष्मी सदा पालय माम्॥6॥
॥ विद्यालक्ष्मि ॥
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि,शोकविनाशिनि रत्नमये
मणिमयभूषित कर्णविभूषण,शान्तिसमावृत हास्यमुखे।
नवनिधिदायिनि कलिमलहारिणि,कामित फलप्रद हस्तयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम्॥7॥
॥ धनलक्ष्मि ॥
धिमिधिमि धिंधिमि धिंधिमि-धिंधिमि,दुन्दुभि नाद सुपूर्णमये
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम,शङ्खनिनाद सुवाद्यनुते।
वेदपूराणेतिहास सुपूजित,वैदिकमार्ग प्रदर्शयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,धनलक्ष्मि रूपेणा पालय माम्॥8॥

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प्रदोष व्रत हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण और पवित्र व्रत है। इसे भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह व्रत त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है और प्रत्येक वार पर आने वाले प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व और फल है।

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