अथर्ववेद (Atharvaveda)

अथर्ववेद की रचना और उसके स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इस वेद की रचना चारों वेदों में सबसे आखिर में हुई थी। माना जाता है कि अथर्ववेद को अंगिरस और अथवर्ण ऋषि द्वारा रचा गया है इसलिए इसका एक नाम अथर्वांगिरस वेद भी है। अथर्ववेद में कुल 20 काण्ड, 730 सूक्त और 5987 मंत्र हैं। इस वेद में ब्रह्माज्ञान, औषधि, प्रयोग रोग निवारण, जन्त्र-तन्त्र और टोना-टोटका जैसे विषयों पर महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।


आयुर्वेद की जानकारी: अथर्ववेद का सबसे उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण विषय आयुर्विज्ञान है, इसके अलावा इसमें जीवाणु विज्ञान और औषधियों के बारे में भी अच्छी खासी जानकारी दी गई है। 

अथर्ववेद में भूमि सूक्त का भी वर्णन आता है. जिसके द्वारा राष्ट्रीय भावना का सुदृढ़ प्रतिपादन शुरू माना जाता है। अथर्ववेद के एक अन्य सूक्त में मानव शरीर और और उसकी रचना के बारे में भी जानकारी दी गई है। इस सूक्त में  शरीर उपचार से जुड़े विषयों की जानकारी देने वाली शास्त्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली यानी आयुर्वेद की उत्पत्ती का भी जिक्र आता है हालांकि शास्त्रों में इसे समर्थन नहीं मिलता है।

अथर्ववेद में ऋग्वेद और सामवेद से भी मंत्र लिए गए हैं. इसमें जादू से संबंधित मंत्र-तंत्र, राक्षस, पिशाच, आदि भयानक शक्तियों के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी है। अथर्ववेद में ऋग्वेद के उच्च कोटि के देवी देवताओं को गौड़ स्थान दिया गया है। धर्म के इतिहास की दृष्टि से ऋग्वेद और अथर्ववेद दोनों का ही महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है।

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