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बागनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के बागेश्वर तीर्थ स्थान में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है। ये मंदिर सरयू और गोमती नदियों के संगम पर स्थित है। ये उत्तर भारत में एकमात्र प्राचीन मंदिर शिव मंदिर है जो दक्षिण मुखी है, जिसमें शिव शक्ति की जलहरी पूर्व दिशा को है। यहां शिव पार्वती एक साथ स्वयंभू रुप में जलहरी के मध्य विद्यमान है। यह बागेश्वर जिले का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है और जिले का नाम इसी मंदिर के नाम पर पड़ा।
बागनाथ मंदिर का इतिहास किवदंतियों और आध्यात्मिकता से भरा हुआ है, जो शुरुआती शताब्दियों से चला आ रहा है। कहा जाता है कि मंदिर की स्थापना 7वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान चंद राजाओं ने की थी। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ये वह स्थान है जहां पर महान ऋषि मार्कंडेय ने भगवान शिव की पूजा की थी, जो बाघ के रुप में प्रकट हुए थे, इसलिए इसका नाम बागनाथ पड़ा, जिसका मतलब है बाघ भगवान। सदियों से मंदिर के कई जीर्णोद्धार और विस्तार के प्रयास हुए है।
यह मंदिर उत्तर भारतीय नागर शैली की वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसने इतिहासकारों और वास्तुकला के प्रति उत्साही लोगों को समान रुप से आकर्षित किया है। इस मंदिर का महत्व स्कंद पुराण में वर्णित है। बागनाथ मंदिर में चतुर्मुखी शिवलिंग और कई अन्य देवता हैं। यह मंदिर विभिन्न आकार की पीतल की घंटियों के साथ अद्भुत वास्तुकला का प्रदर्शन करता है। बागेश्वर में कई मंदिर समूह हैं जो हिंदू देवताओं जैसे भगवान भैरव, दत्तात्रेय महाराज, गंगा मैया, भगवान हनुमान, देवी दुर्गा, देवी कालिका, थिंगल भैरव, पंचनाम जूना खान और वनेश्वर को समर्पित है।
बागनाथ मंदिर की कथा दिलचस्प है। शिव पुराण के मानस खंड के अनुसार इस नगर को शिव के गण चंडीश ने शिवजी की इच्छा के अनुसार बसाया था। चंडीश द्वारा बसाया गया नगर शिव को पसंद आ गया। उन्होंने नगर को उत्तर काशी की नाम दिया। पहले मंदिर बहुत छोटा था। चंद वंश के राजा लक्ष्मी चंद ने मंदिर को भव्य रुप दिया।
पुराण के अनुसार, अनादिकाल में मुनि वशिष्ठ अपने कठोर तपबल से ब्रह्मा के कमंडल से निकली मां सरयू को धरती पर ला रहे थे। ब्रह्मकपाली पत्थर के पास ऋषि मार्कंडेय तपस्या में लीन थे। वशिष्ठ को ऋषि मार्कंडेय की तपस्या भंग होने का डर सताने लगा। सरयू का जल इकठ्ठा होने लगा। सरयू आगे नहीं बढ़ सकी। मुनि वशिष्ठ ने शिव की आराधना की। फिर शिवजी ने बाघ और माता पार्वती ने गाय का रुप रखा। ऋषि मार्कंडेय तपस्या में लीन थे। गाय के रंभाने से मार्कण्डेय मुनि की आंखे खुली, व्याघ्र से गाय को मुक्त कराने के लिए दौड़े को व्याघ्र ने शिव और गाय ने पार्वती का रुप धारण कर लिया। इसके बाद मां पार्वती और भगवान शिव ने मार्कंडेय ऋषि को इच्छित वर दिया और मुनि वशिष्ठ को आशीर्वाद। जिसके बाद सरयू आगे बढ़ गई।
बागनाथ मंदिर में हर महीने और मुख्य रुप से शिवरात्रि के दिन हजारों भक्तों का तांता लगता है। जनवरी के महीने में मंदिर में एक मेला भी लगता है। यह एक भव्य मेला है जिसे उत्तरायणी कहा जाता है। यह मेला मकर संक्रांति के पर्व पर मनाया जाता है। यह त्योहार भोर के समय दोनों खूबसूरत नदियों सरयू और गोमती के संगम पर पवित्र स्नान करके मनाया जाता है। प्रसिद्ध पवित्र स्नान के बाद बागनाथ मंदिर के अंदर स्थापित शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है। जो लोग इस अवसर पर धार्मिक रुप से रुचि रखते हैं वे लगातार तीन दिनों तक इस अनुष्ठान को जारी रखते हैं जिसे त्रिमागी के नाम से जाना जाता है। मंदिर में अन्य खूबसूरत त्योहार भी मनाए जाते हैं।
बागनाथ मंदिर में मुख्य रुप से बेलपत्र से पूजा की जाती है। कुमकुम, चंदन और बताशे चढ़ाने की परंपरा है। खीर और खिचड़ी का भोग भी यहां लगाया जाता है।
बागनाथ मंदिर उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देशभर के भक्त पहुंचते हैं। मान्यता है कि यहां के दर्शन करने से सभी दुख दूर होते हैं और निसंतानों को संतान की प्राप्ति होती है।
हवाई मार्ग - बागनाथ मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है, जो लगभग 188 किमी दूर है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी लेकर बागनाथ मंदिर पहुंच सकते है।
रेल मार्ग - बागनाथ जाने के लिए निकटतम हवाई अड्डा काठगोदाम रेलवे स्टेशन है, जो लगभग 180 किलोमीटर है। काठगोदाम से आप बागेश्वर के लिए टैक्सी या बस ले सकते हैं। दिल्ली, कोलकाता, जैसे प्रमुख शहरों से यहां के लिए ट्रेनें उपलब्ध है।
सड़क मार्ग - बागेश्वर उत्तराखंड के प्रमुख शहरों और कस्बों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
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