प्राचीन श्री हनुमान मंदिर, वाराणसी

दर्शन समय

5:00 AM - 10:00 PM

इस मंदिर में हनुमान जी ने तुलसीदास को दिए थे दर्शन, मिट्टी का स्वरूप धारण कर हो गए स्थापित


वाराणसी में श्री संकटमोचन हनुमान मंदिर में हनुमान जी की दिव्य प्रतिमा है। ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी की यह मूर्ति गोस्वामी तुलसीदास जी के तप एवं पुण्य से प्रकट हुई थी। यह देश के ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है। पुराणों के अनुसार काशी के संकट मोचन के मंदिर का इतिहास करीब चार सौ वर्ष पुराना है। मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों के सभी कष्ट हनुमान के दर्शन मात्र से ही दूर हो जाते हैं। 



बजरंगबली मिट्टी का स्वरूप धारण कर यहां स्थापित हो गए


मान्यता के अनुसार इसी जगह पर जब गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस की रचना कर रहे थे और अस्सी घाट पर इसके अध्याय पढ़कर सुनाया करते थे। साथ ही राम भजन करते थे। वहां एक सूखा बबूल का पेड़ था। ऐसे में वे जब भी उस जगह जाते, एक लोटा पानी डाल देते थे। धीरे-धीरे वह पेड़ हरा होने लगा। एक दिन पानी डालते समय तुलसीदास को पेड़ पर बैठे पिशाच ने उनसे पूछा कि क्या वे श्री राम से मिलना चाहते हैं? इस पर तुलसीदास जी ने पूछा ‘तुम मुझे राम से कैसे मिला सकते हो?’ उसने बताया कि आपकी रामकथा सुनने जो वृद्ध कुष्ठ रोगी प्रतिदिन आता है, वही हनुमान हैं। यह सुनकर तुलसीदास अगली बार राम कथा सुनाने के बाद जब सभी लोग चले गए तब उस वृद्ध का पीछा करने लगे। हनुमान जी समझ गए कि तुलसीदास पीछा कर रहे हैं तो वे रुक गए और तुलसीदास जी उनके चरणों में गिर गए और असली रूप में आने की प्रार्थना की। इस पर हनुमान जी ने अपने असली रूप में उन्हें दर्शन दिए।इसके बाद उनके आग्रह करने पर मिट्टी का रूप धारण कर यहां स्थापित हो गए, जो आज संकट मोचन मंदिर के नाम से जाना जाता है। 



कैसे पहुंचे 


यह मंदिर वाराणसी के दक्षिणी भाग में दुर्गाकुंड रोड में स्थित है। वाराणसी रेलवे स्टेशन से या 11 किलोमीटर की दूरी पर है। आप यहां पहुंचने के लिए ई रिक्शा या ऑटो ले सकते हैं।


डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

यह भी जाने

मंदिर