बाबा बटेश्वर धाम, आगरा, उप्र

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यमुना किनारे बसा भोले बाबा का ये मंदिर, लंबे समय तक बना रहा डाकुओं का अड्डा 


उत्तर प्रदेश के शहर आगरा में ताजमहल के पास आपने कई स्मारक देखें होगें। लेकिन यहां से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर एक मंदिर है जो पूरे प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में प्रसिद्ध है। हम बात कर रहें है आगरा के पास उत्तर दिशा में यमुना नदी के किनारे बाबा भोलेनाथ की नगरी तीर्थ बटेश्वर धाम के बारे में। बाबा बटेश्वर नाथ धाम से सैकड़ों कहानियां जुड़ी हुई है। ये कहानियां सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलयुग कालखंड की हैं। 


चंबल की घाटी में स्थित है मंदिर


बटेश्वर नाथ मंदिर चंबल की घाटी में स्थित भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है। माना जाता है कि चंबल क्षेत्र के कुछ सबसे कुख्यात और वांछित डकैतों ने इसे अपना ठिकाना बना लिया था। कहा जाता है कि हर डकैती के बाद डाकू यहां आकर एक घंटा चढ़ाते थे। साल 2005 में इस जर्जर हो चुके मंदिर को भारतीय पुरातत्व विभाग ने संरक्षण का फैसला किया। ये मंदिर भगवान शिव या बटेश्वर महादेव को समर्पित है और इसलिए इन्हें बटेश्वर मंदिर कहा जाता है। 


जैन धर्म से भी जुड़ा हुआ है इतिहास 


स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, भगवान शिव ने यहां एक बरगद के पेड़ जिसे संस्कृत में बट कहा जाता है, के नीचे कुछ समय के लिए विश्राम किया था। इस प्रकार, उन्हें बट ईश्वर (बरगद भगवान) के रुप में जाना जाने लगा। धीरे-धीरे, इस स्थान को बटेश्वर कहा जाने लगा। बटेश्वर आगरा धाम के मंदिरों के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण लगभग 400 साल पहले भदावर वंश के राजा बदन सिंह ने करवाया था। इस परिसर में बाबा बटेश्वर नाथ को समर्पित 100 से अधिक मंदिर थे। लेकिन उनमें से केवल 42 मंदिर की अब बचे हैं। प्राचीन जैन ग्रंथों में, इस क्षेत्र को शौरीपुर कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ का जन्म यहीं हुआ था। इस प्रकार बटेश्वर और आसपास के क्षेत्र जैन समुदाय के लिए भी पवित्र हैं। बटेश्वर से लगभग 3 किमी दूर आधुनिक शौरीपुर में खुदाई से पता चलता है कि यह स्थल यादव वंश के अधीन एक समृद्ध बस्ती थी। और यह गुर्जर, चंदेला और भदावर राजाओं के अधीन एक महत्वपूर्ण शहर रहा।


सेठ-सेठानी की मुद्रा में शिव-पार्वती 


बाबा बटेश्वर धाम के इस प्राचीन मंदिर में भगवान शिव को मूंछों और बड़ी आंखों के साथ दिखाया गया है। यहां शिव और पार्वती सेठ-सेठानी की मुद्रा में बैठे हैं। शिव की इस तरह की मूर्ति दुनियाभर में इकलौती है। शिव को समर्पित इस विशाल मंदिर की दीवारों पर ऊंची गुंबददार छत है एवं इसका गर्भगृह रंगीन चित्रों से सुसज्जित है। गर्भगृह के सामने एक कलात्मक मंडप है। 


मंदिर में चढ़ाए जाते हैं घंटे 


इस मंदिर में एक हजार मिट्टी के दीपकों का स्तंभ है जिसे सहस्त्र दीप स्तंभ कहा जाता है। बटेश्वर का यह धाम 101 शिव मंदिरों की श्रृंखला के लिए भी पूरे देश में जाना जाता है। नागर शैली के इस खूबसूरत शिव मंदिर का निर्माण भदावर के राजघराने ने कराया था। इस शिव मंदिर की मान्यता दूर -दूर तक है। यहां पर लोग घंटा चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं। यहां 50 ग्राम से लेकर पांच क्विंटल तक के घंटे चढ़ाए जाते हैं।


यहां लगता है पशु मेला


यहां पर कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को हर साल बड़ा मेला लगता है जिसका मुख्य आकर्षण पशु मेला भी है। इस मेले में हर साल लाखों रुपयों का पशुओं का कारोबार होता है। पूर्णिमा पर विशेष स्नान के लिए यहां लाखों श्रद्धालुओं का आना होता है।


यहां उल्टी दिशा में बहती है यमुना नदी


आमतौर पर यमुना नदी पश्चिम से पूरब दिशा की ओर बहती है, लेकिन बटेश्वर नगरी में यह पूरब से पश्चिम दिशा की ओर बहती हुई बटेश्वर का चक्कर लगाती है। यह आकृति अर्धचंद्राकार का रुप लेती हुई बह रही है। कार्तिक पूर्णिमा में चंद्रमा का प्रकाश जब तट पर बनी 101 महादेव मंदिरों की श्रृंखला पर पड़ता है तो मंदिरों का प्रतिबिंब यमुना में स्पष्ट झलकता है। 



बाबा बटेश्वर धाम कैसे पहुंचे


हवाई मार्ग -  यहां का निकटतम हवाई अड्डा आगरा है, आगरा से ये जगह 70 किमी दूर हैं। यहां से आप टैक्सी के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग - यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन भी आगरा स्टेशन है। बटेश्वर जाने के लिए आपको यहां से टैक्सी लेनी होगी।

सड़क मार्ग - आगरा से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2,3, 11 गुजरते हैं। यह स्थान राज्य के साथ-साथ राज्य के बाहर भी बस सेवाओं द्वारा जुड़ा हुआ हैं। 


डिसक्लेमर

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