औघड़नाथ मंदिर, मेरठ, उत्तर प्रदेश (Augharnath Temple, Meerut, Uttar Pradesh)

दर्शन समय

6 AM - 8;30 PM

इस मंदिर में होते हैं भगवान शिव के औघड़दानी शिव के दर्शन,  स्वतंत्रता की लड़ाई यहीं शुरू हुई 


मेरठ के कैंट क्षेत्र में स्थित बाबा औघड़नाथ मंदिर उत्तर भारत का प्रसिद्ध मंदिर है। देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का आगाज भी यहीं से हुआ था। इस प्रसिद्ध शक्तिपीठ का इतिहास काफी पुराना है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वंयभू, फलप्रदाता एवं मनोकामनायें पूर्ण करने वाले औघड़दानी शिवस्वरुप हैं। इस कारण इस मंदिर का नाम औघड़नाथ शिव मंदिर पड़ गया। परतंत्र काल में भारतीय सेना को काली पल्टन कहा जाता था। यह मंदिर काली पल्टन क्षेत्र में स्थित होने से काली पल्टन मंदिर के नाम से भी जाना जाने लगा।


पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुई थी मंदिर की स्थापना 


इस मंदिर का स्थापना का कोई निश्चित समय मालूम नहीं है, लेकिन जनश्रुति के अनुसार, यह प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से भी पहले से शहर और आसपास के लोगों के बीच वंदनीय श्रद्धास्थल के रुप में विद्यमान था। मंदिर का ऐतिहासिक महत्व इस तथ्य से है कि इसने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मराठों के समय कई पेशवा विजय यात्रा से पूर्व मंदिर में उपस्थित होकर भगवान शिव की आराधना करते थे।


जनश्रुतियां है कि इस मंदिर में माथा टेकने के बाद जब मराठा रणभूमि के लिए निकलते थे तो जीत सुनिश्चित होती थी। मंदिर के ठोस तथ्य तो ज्यादा नहीं मिले, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। 


अंग्रेजो ने छीन लिया था


1803 के बाद अंग्रेजों ने गंगा-जमुना के दोआब के हिस्से को मराठाओं से छीन लिया था और मेरठ के इसी हिस्से में अपनी छावनी बनाई थी। बसावट के समय औघड़नाथ मंदिर का यह इलाका भारतीय पलटनों के हिस्से में आया। यहां अंग्रेजी फौज ने प्रशिक्षण केंद्र बना रखा है। यहां मंदिर के साथ एक कुआं भी था, जहां भारतीय सैनिक खाली समय में इकठ्ठा होते थे। यह निशानियां 1944 तक मिलती है।


यहीं से हुई थी 1857 की क्रांति की शुरुआत


भारत के प्रथम स्वतंत्रा संग्राम के बिगुल यहीं से फूंका गया था। जानकारों की मानें तो बंदूक की कारतूस में गाय की चर्बी का इस्तेमाल होने के बाद सिपाही उसे मुंह से खोलकर इस्तेमाल करने लगे थे। तब मंदिर के पुजारी ने उन जवानों को मंदिर में पानी पिलाने से मना कर दिया। ऐसे में पुजारी की बात सेना के जवानों के दिल पर लग गई। उन्होंने उत्तेजित होकर 10 मई 1857 को यहां क्रांति का बिगुल बजा दिया। 


मंदिर के कुंए में पानी पीते थे सैनिक 


जानकारों के अनुसार औघड़नाथ शिव मंदिर में कुएं पर सेना के जवान आकर पानी पीते थे। इसी ऐतिहासिक कुएं पर बांग्लादेश के विजेता तत्कालीन मेजर जनरल श्री जगजीत सिंह अरोड़ा के कर कमलों द्वारा स्थापित शहीद स्मारक क्रांति के गौरवमय अतीत का ज्वलन्त प्रतीक है। यहां पर आज भी हर साल 10 मई को भारत वर्ष स्वतंत्रता सेनानी इकठ्ठे होकर शहीदों को अपनी पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। पुराने लोग जानते है कि 1944 तक प्रशिक्षण केंद्र से लगा हुआ वृक्षों के जंगल में छोटा-साफ शिव मंदिर व उसके पास में कुआं के रुप में विद्यमान था। धीरे-धीरे मंदिर के उत्थान के विचार से देवधिदेव महादेव प्रलयंकर भगवान शिव की इच्छा एवं प्रेरणा जानकर अक्टूबर 1968 को शाम 5 बजे नए मंदिर का शिलन्यास वेद मंत्रो की तुमुल ध्वनि के मध्य ब्रह्मलीन ज्योतिषीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित जगत गुरु शंकराचार्य कृष्णबोधाश्रम जी के कर कमलो द्वारा सम्पन्न हुआ। फिर 13 फरवरी 1972 में नई देव प्रतिमाओं का प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव हुआ।


सफेद संगमरमर से बना है मंदिर 


बाबा औघड़नाथ मंदिर सफेद संगमरमर से बना है। मंदिर के ऊपर अलग-अलग प्रकार की नक्काशी की गई है। यहां का शिवलिंग स्वंयभू है। 1944 तक यह मंदिर एक कुएं के रुप में था। लेकिन जैसे-जैसे समय बदला, मंदिर के सौंदर्यीकरण के बाद इसका रुप बदलता गया। मंदिर की ऊंचाई 75 फीट है। पहली बार इस मंदिर का साल 1944 में जीर्णोद्धार कराया गया। मंदिर के बीच में भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती की मूर्तियां है। मंदिर के उत्तरी दिशा की तरफ नंदी महाराज की मूर्ति है। यहां का शिखर 110 फीट का है। स्वर्ण कलश 20 फीट, गर्भगृह 144 वर्ग फुट और परिक्रमा मंडप 35 फुट लंबा है। 


परिसर में है राधा-कृष्ण व मां दुर्गा का मंदिर


बाबा औघड़नाथ मंदिर के पीछे सत्संग भवन बना है। यहां पर भजन कार्यक्रम होते हैं। परिसर के अंदर ही राधा-कृष्ण और मां दुर्गा का भी एक मंदिर है। बाबा औघड़नाथ शिव मंदिर और राधा-कृष्ण मंदिर दोनों की ऊंचाआ 75 फीट है। वृंदावन के प्रेम मंदिर की तर्ज पर प्रदक्षिणा पथ को नक्काशीदार मेजराबों से सजाया गया है। नंदी द्वार पर नया द्वार बनाया गया है। प्रथम तल तक पुराने पत्थरों की जगह नए पत्थरों को लगाया गया है। वर्तमान में गर्भगृह में पत्थरों की घिसाई का काम चल रहा है। 


औघड़नाथ मंदिर कैसे पहुंचे


हवाई मार्ग - यहां का निकटतम हवाई अड्डा इंदिरा गांधी अंतराष्ट्रीय एयरपोर्ट है, जो लगभग 100 किमी दूर हैं। यहां से आप टैक्सी के द्वारा मंदिर तक पहुंच सकते हैं।


रेल मार्ग - यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन मेरठ कैंट है जो मंदिर से लगभग 2.5 किमी दूर है। यहां से आप रिक्शा या ऑटो के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।


सड़क मार्ग - यहां दो मुख्य बस टर्मिनल हैं, अर्थात भैंसाली बस टर्मिनल और सोहराब गेट बस टर्मिनल, जहां से उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की बसे पूरे राज्य और आसपास के शहरों के लिए चलती है।


मंदिर का समय - सुबह 6 बजे से रात 8:30 बजे तक।

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