श्री नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम्

Narasimha Dwadashi Stotram: नरसिंह द्वादशी पर करें इस स्तोत्र का पाठ, जीवन से दूर होगी नकारात्मक ऊर्जा


नरसिंह द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के सिंह अवतार की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए नरसिंह रूप में अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था। यह अवतार फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर हुआ था, और तब से इस दिन को भगवान नृसिंह की जयंती के रूप में मनाया जाता है।

यह स्तोत्र भगवान विष्णु के उग्र और रक्षक स्वरूप नृसिंह की महिमा का वर्णन करने के लिए रचा गया है। यह उन भक्तों के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है जो भय, संकट, शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति चाहते हैं। इस दिन श्री लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत लाभदायक माना जाता है।


।।श्री लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्र।।



श्रीमत् पयोनिधिनिकेतन चक्रपाणे भोगीन्द्रभोगमणिरञ्जितपुण्यमूर्तो ।

योगीश शाश्वत शरण्य भवाब्धिपोत लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम् ॥
ब्रह्मेन्द्ररुद्रमरुदर्ककिरीटकोटि सङ्घट्टिताङ्घ्रिकमलामलकान्तिकान्त ।

संसारभीकरकरीन्द्रकराभिघात निष्पिष्टमर्म वपुषः सकलार्तिनाश ।
प्राणप्रयाणभवभीतिसमाकुलस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम् ॥

अन्धस्य मे हृतविवॆकमहाधनस्य चोरैः प्रभो बलिभिरिन्द्रियनामधेयैः ।
मोहांधकारकुहरे विनिपातितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम् ॥

लक्ष्मीपते कमलनाभ सुरेश विष्णो वैकुण्ठ कृष्ण मधुसूदन पुष्कराक्ष ।
ब्रह्मण्य केशव जनार्दन वासुदेव देवेश देहि कृपणस्य करावलम्बम् ॥
यन्माययोजितवपुः प्रचुरप्रवाह मग्नार्थमत्र निवहोरुकरावलम्बम् ।


श्री नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम् पाठ विधि

*इस स्तोत्र का पाठ प्रातःकाल या सूर्यास्त के समय करें।

*पाठ से पहले भगवान विष्णु और नृसिंह की पूजा करें।

*आसन पर शुद्ध होकर बैठें और मन को एकाग्र करें।
श्री नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्र का उच्चारण श्रद्धा और भक्ति भाव से करें।


।।नरसिंह भगवान आरती।।


ॐ जय नरसिंह हरे,
प्रभु जय नरसिंह हरे ।
स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे,
स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे,
जनका ताप हरे ॥
ॐ जय नरसिंह हरे ॥

तुम हो दिन दयाला,
भक्तन हितकारी,
प्रभु भक्तन हितकारी ।
अद्भुत रूप बनाकर,
अद्भुत रूप बनाकर,
प्रकटे भय हारी ॥
ॐ जय नरसिंह हरे ॥

सबके ह्रदय विदारण,
दुस्यु जियो मारी,
प्रभु दुस्यु जियो मारी ।
दास जान आपनायो,
दास जान आपनायो,
जनपर कृपा करी ॥
ॐ जय नरसिंह हरे ॥

ब्रह्मा करत आरती,
माला पहिनावे,
प्रभु माला पहिनावे ।
शिवजी जय जय कहकर,
पुष्पन बरसावे ॥
ॐ जय नरसिंह हरे ॥



नरसिंह द्वादशी का महत्व


विष्णु पुराण के अनुसार, भगवान श्री हरि का नरसिंह अवतार उनके दशावतारों में चौथा स्वरूप माना गया है। ऐसी मान्यता है कि फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर, अपने परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए, भगवान विष्णु एक खंभे को चीरते हुए प्रकट हुए थे। उनका आधा शरीर मनुष्य का और आधा शरीर शेर का था, इसलिए इस अवतार को 'नरसिंह अवतार' कहा जाता है।

भगवान नरसिंह ने प्रह्लाद से कहा था कि जो मनुष्य 'नरसिंह द्वादशी' पर उनके इस अवतार का स्मरण करते हुए पवित्र मन से पूजा और व्रत करेगा, उसे जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलेगी और सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।

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