पितृ पक्ष में कौओं को भोजन कराने की परंपरा क्यों ?
हिंदू धर्म में पिृतपक्ष का बहुत महत्व माना जाता है। इस साल 17 सितंबर 2024 से पितृ पक्ष शुरु हो रहे हैं। पितृपक्ष अपने पूर्वजों की उपासना का पर्व है।
पितृपक्ष के दौरान पितरों के नाम से दान करने और कौवों को भोजन कराने का विशेष महत्व है। पितृपक्ष में पितर कौवों के रुप में धरती पर आते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार जब श्री राम माता सीता के साथ वनवास में थे तो उस समय देवराज इंद्र के पुत्र जयंत कौवे के रुप में श्री राम की कुटिया में पहुंचे।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार जब श्री राम माता सीता के साथ वनवास में थे तो उस समय देवराज इंद्र के पुत्र जयंत कौवे के रुप में श्री राम की कुटिया में पहुंचे।
माता के पैर से खून आ गया जिसके बाद श्री राम ने क्रोधित होकर एक तिनका उठाया और जयंत की तरफ फेंक दिया।
उस समय कौवे रुपी इंद्र के पुत्र जयंत को अपनी भूल का आभास हुआ और वह श्री राम एवं माता सीता से क्षमा मांगने लगे। श्रीराम ने कौवे को क्षमा कर दिया लेकिन उस तिनके से उसकी एक आंख फूट गई।
श्री राम ने कहा कि अब से कौवों को अपना हर जन्म याद रहेगा। कौवों के द्वारा कोई भी व्यक्ति अपने पूर्वजों को मोक्ष दिला पाएगा। श्राद्ध कर्म के बाद कौवों को भोजन कराने से पितृ खुश होंगे।
इसके बाद जब श्री राम का वनवास समाप्त होने वाला था और उन्हें अपने पिता दशरथ का श्राद्ध करना था तब माता सीता ने कौवें की सहायता से ही तर्पण एवं श्राद्ध कर्म पूरा किया था। तभी से ये परंपरा चली आ रही है।