कैसे हुई मां दुर्गा की उत्पत्ति, जानिए क्या कहता है मार्कण्डेय पुराण
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Team Bhakt Vatsal3rd October 2024
शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि के नौ दिन शक्ति की देवी मां दुर्गा को समर्पित है। इसलिए इन दिनों में देवी की उपासना की जाती है। मार्कण्डेय पुराण में देवी दुर्गा की उत्पत्ति का रोचक प्रसंग वर्णित है।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, मां दुर्गा अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। जब दुर्गा मां का नाम सती था। मां सती का विवाह भगवान शंकर से हुआ।
एक समय एक भैंसा जो कि एक दानव था। महिषासुर के नाम से विख्यात था। वह बहुत ही शक्तिशाली थी। वो सभी देवताओं का वध करना चाहता था। जिससे वो संसार में सर्वोच्च बन सकें।
इससे घबराकर सभी देवता सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी के पास गए और अपनी व्यथा उन्हें सुनाई। सभी ने सर्वसम्मति से अपनी शक्तियों से मिलाकर देवी दुर्गा का सृजन किया।
देवी दुर्गा का सृजन सभी शक्तियों को मिलाने से ही संभव था। ताकि महिषासुर का वध किया जा सके। मां का स्वरुप बहुत ही आकर्षक है। उनके मुख पर सौम्यता और स्नेह साफ दिखता है।
उनके दस हाथ हैं। जिसमें हर एक में विशेष शस्त्र हैं। उन्हें हर भगवान और देवता ने कुछ न कुछ अवश्य दिया था। भगवान शिव के तेज से देवी का मुख, यमराज के तेज से सर के बाल।
श्री विष्णु के तेज से बलशाली भुजाएं, चंद्रमा के तेज से स्तन, धरती के तेज से नितम्ब, इंद्र के तेज से मध्य भाग, वायु से कान, संध्या के तेज से भौंहे, कुबेर के तेज से नासिका, अग्नि के तेज से नेत्र।
देवताओं के द्वारा ही मां दुर्गा में शक्ति का संचार हुआ। शिव जी ने देवी अपना त्रिशूल, विष्णु ने अपना चक्र, वरुण ने अपना शंख आदि उन्हें प्रदान किया।
मां दुर्गा की सवारी शेर है। देवी दुर्गा को महिषासुर का वध करने के लिए बनाया गया। बाद में देवी ने महिषासुर का वध कर दिया। इस प्रकार मां दुर्गा आज भी बुरी बाधाओं का नाश करती हैं।
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