ब्रह्मकपाली तीर्थ है पितरों की मुक्ति का अंतिम द्वार, यहां शिव जी को पाप से मुक्ति मिली थी
हिन्दू धर्म में पिंडदान का विशेष महत्व है। गया की तरह ही ब्रह्मकपाल तीर्थ में किया गया पिंडदान बहुत महत्व रखता है। मान्यता है कि इस तीर्थ पर पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
ब्रह्मकपाल तीर्थ एक ऐसा स्थान है जहां श्रद्धालु अपने पितरों का पिंडदान कर उन्हें मोक्ष दिला सकते हैं। यह उत्तराखंड के चारों धामों में से एक बद्रीनाथ धाम के पास है।
जिन पितरों को अन्य किसी जगह से मुक्ति नहीं मिलती उनका यहां पर श्राद्ध करने से मुक्ति मिल जाती है। यह स्थान बद्रीनाथ धाम के पास अलकनंदा नदी के तट पर है।
पांडवों ने भी अपने परिजनों की आत्म शांति के लिए यहां पर पिंडदान किया था। श्रीमद् भागवत महापुराण के अनुसार, युद्ध में अपने बंधु-बांधवों की हत्या करने पर पांडवों को गोत्र हत्या का पाप लगा था।
गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्गारोहिणी यात्रा पर जाते हुए पांडवों ने ब्रह्मकपाल तीर्थ में ही अपने पितरों का तर्पण किया था। पुराणों के अनुसार, ये स्थान महान तपस्वियों और पवित्र आत्माओं का है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति इसी स्थान पर मिली थी। इसलिए इस जगह को ब्रह्मकपाल तीर्थ का नाम दिया गया है।
ब्रह्मकपाल तीर्थ में किया जाने वाला पिंडदान आखिरी माना जाता है। इसके बाद उक्त पूर्वज के निमित्त किसी भी तरह का पिंडदान या श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है।
स्कंद पुराण अनुसार, पिंडदान के लिए गया, पुष्कर, हरिद्वार, प्रयागराज व काशी भी श्रेयस्कर हैं। लेकिन बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल तीर्थ में किया गया पिंडदान इस सबसे आठ गुना ज्यादा फलदायी है।
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