भगवान विष्णु  ने क्यों किया था तुलसी से विवाह, जानें पौराणिक कथा

WRITTEN BY Team Bhakt Vatsal 10th Nov 2024

तुलसी विवाह पर्व का सनातन धर्म में बहुत महत्व है। यह शुभ दिन भगवान विष्णु और देवी तुलसी के मिलन का प्रतीक है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार जालंधर नाम के राक्षस से परेशान देवतागण भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें अपनी समस्याएं बताईं।

इसके बाद हल निकला कि यदि जालंधर की पत्नी वृंदा के सतीत्व को नष्ट कर दिया जाए, तो जालंधर का अंत आसानी से हो जाएगा।

वृंदा के पतिव्रत धर्म को तोड़ने के लिए नारायण ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा को स्पर्श कर दिया।

वृंदा का पतिव्रत धर्म खंडित हो गया और जालंधर की सारी शक्तियां क्षीण हो गई और शिव जी ने उस असुर का वध कर दिया।

जब इस बात की जानकारी वृंदा को हुई, तो उन्होंने श्रीहरि को श्राप दे दिया कि वे तुरंत पत्थर बन जाएं।

श्राप से भगवान विष्णु तुरंत ही पाषाण रूप में आ गए। यह सब देखकर माता लक्ष्मी ने वृंदा से श्राप खत्म करने की प्रार्थना की।

वृंदा ने नारायण को तो श्राप से मुक्त कर दिया, लेकिन स्वयं आत्मदाह कर लिया। जिस स्थान पर वृंदा भस्म हुई वहां तुरंत एक पौधा उग गया।

उस पौधे को विष्णु भगवान ने तुलसी का नाम दिया और बोले- शालिग्राम नाम से मेरा एक रूप इस पत्थर में हमेशा विराजमान रहेगा।

इसकी पूजा सदैव के लिए तुलसी के साथ ही की जाएगी।

इसी कारण से हर साल देवउठनी एकादशी पर श्री हरि के स्वरूप शालिग्राम जी और देवी तुलसी का विवाह कराया जाता है।

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