शिव पूजा में क्यों नहीं बजाते शंख, जानें पौराणिक कथा
WRITTEN BY
Team Bhakt Vatsal
23rd Nov 2024
शंख सनातन धर्म में सभी धार्मिक और वैदिक कार्यों की पूजन सामग्री का अभिन्न हिस्सा है। मान्यता है कि शंख सौभाग्यदायक है।
भारतीय संस्कृति में यह मांगलिक चिन्ह के रूप में सर्वमान्य है। लेकिन क्या आपको पता है कि शिव पूजा में शंख बजाना मना है।
शिवपुराण के अनुसार, शंखचूर्ण दैत्यराज दंभ का पुत्र था। शंखचूर्ण ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से अजेयता का वरदान हासिल किया।
ब्रह्माजी से वरदान मिलने के बाद शंखचूर्ण में भी अहंकार और घमंड आ गया और वह सभी पर अत्याचार करने लगा।
शंखचूर्ण के अत्याचारों से परेशान होकर देवताओं ने विष्णु जी से गुहार लगाई। लेकिन विष्णु जी ने खुद दंभ को पुत्र का वरदान दिया था।
विष्णु जी ने शिव जी को देवताओं की रक्षा करने के लिए मना लिया। लेकिन वरदान की वजह से शिव जी भी उसका कुछ नहीं कर पाए।
जब शंखचूर्ण का अत्याचार बढ़ने लगा तक तब विष्णु जी ने ब्राह्मण का रूप धारण कर दैत्यराज से श्रीकृष्ण कवच दान में मांगा।
इसके बाद शंखचूर्ण का रूप धारण कर तुलसी के सतीत्व को भंग कर दिया। इसके बाद शंखचूर्ण शक्तिहीन हो गया।
शक्तिहीन शंखचूर्ण को शिव जी ने विजय नामक त्रिशूल से मार दिया। कहा जाता है कि शंखचूर्ण की हड्डियों से शंख की उत्पत्ति हुई।
इसी वजह से शंखनाद और शंख जल का उपयोग शंकर भगवान की पूजा में नहीं किया जाता है।
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