Logo

कामाख्या देवी शक्तिपीठ, असम (Kamakhya Devi Shaktipeeth, Assam)

कामाख्या देवी शक्तिपीठ, असम (Kamakhya Devi Shaktipeeth, Assam)

कामाख्या शक्तिपीठ में गिरी थी माता की योनि, मां के रजस्वला होने से लाल हो जाता है ब्रह्मपुत्र का पानी


कामाख्या देवी की विश्व प्रसिद्ध शक्तिपीठ असम के गुवाहाटी से 7 किलोमीटर दूर स्थित है। नीलाचल की पहाड़ियों और ब्रह्मपुत्र नदी के निकट बसा माता सती का ये पावन धाम तांत्रिक उपासक के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

यह मंदिर तीन कक्षों से मिलकर बना है। तीसरा कक्ष मंदिर का प्रमुख उपासना स्थल है। इसी कक्ष आधारशिला में योनि जैसी दरार, एक गुफा के रूप में है। मान्यता है यह वही जगह जहां माता सती की योनि गिरी थी।


अम्बुबाची मेले के प्रसाद में बांटा जाता लाल सूती का कपड़ा


मंदिर में कोई चित्र और मूर्ति नहीं है। मंदिर में प्राकृतिक झरना है जिससे बने एक कुंड में भक्त  फूल अर्पित कर पूजा करते हैं। इस कुंड को फूलों से ढककर रखा जाता है क्योंकि कुंड देवी सती की योनि का भाग है।

मान्यता के अनुसार, ब्रह्मपुत्र नदी का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। इसका कारण कामाख्या देवी मां के रजस्वला (मासिक धर्म) होने को बताया जाता है। ऐसा हर साल आषाढ़ माह में मंदिर तीन दिनों के लिए बंद रहता है। ये अम्बुबाची मेले के समय होता है। इन तीन दिनों में भक्तों का बड़ा सैलाब इस मंदिर में उमड़ता है। भक्तों को प्रसाद के रूप में लाल रंग का सूती कपड़ा भेंट किया जाता है।

भगवान शिव के विभिन्न रूपों को समर्पित, कामाख्या मंदिर के परिसर में पाँच मंदिर हैं। मंदिर परिसर में भगवान विष्णु के तीन मंदिर भी हैं। इस मंदिर में दुर्गा पूजा, दुर्गा देउल और मदन देउल सहित कई अन्य पूजा आयोजित की जाती हैं। इस मंदिर में की जाने वाली कुछ अन्य पूजा में मनसा पूजा, पोहन बिया और बसंती पूजा शामिल हैं।


हर दिन मां को चढ़ाई जाती है मादा पशु की बलि


कालिका पुराण, संस्कृत में एक प्राचीन कृति है।  जिसमें कामाख्या को सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली, शिव की युवा दुल्हन और मोक्ष प्रदान करने वाली बताया गया है। शक्ति को कामाख्या के नाम से जाना जाता है। माँ देवी कामाख्या के इस प्राचीन मंदिर के परिसर में पूजा के लिए तंत्र मूल है।

बनी कांत काकती के अनुसार, नर नारायण द्वारा स्थापित पुजारियों के बीच एक परंपरा थी कि गारो जनजाति सूअर की बलि देकर पहले के कामाख्या स्थल पर पूजा करते थे। बलि की परंपरा आज भी जारी है, जिसमें भक्त हर सुबह देवी को पशु और पक्षी भेंट करने के लिए आते हैं।

देवी को चढ़ावा आमतौर पर फूल होता है, लेकिन इसमें पशु बलि भी शामिल हो सकती है। आम तौर पर मादा जानवरों को बलि से छूट दी जाती है।


जिन राजाओं ने बनवाया वही मंदिर में नहीं जाते


कहा जाता है कि यह मंदिर वो मंदिर नहीं जिसका वर्णन पुराणों में है। पूर्व मंदिर को काला पहाड़ ने नष्ट कर दिया था, जिसे बाद में 1565 में चिलाराय ने फिर से बनवाया था, जो कोच वंश के राजा थे। कालिका पुराण की एक कथा के अनुसार, कामाख्या मंदिर उस स्थान को दर्शाता है जहाँ सती शिव के साथ शारीरिक मिलन के लिए गुप्त रूप से सेवानिवृत्त होती थीं। देवी के एक पौराणिक श्राप के कारण, कोच बिहार राजपरिवार के सदस्य मंदिर में नहीं जाते हैं और पास से गुजरते समय अपनी नज़रें फेर लेते हैं।


 मंदिर में पूजा पाठ का समय


  • सुबह 5.30 बजे: पीठ स्थान का स्नान


  • सुबह 6.00 बजे: दैनिक पूजा


  • सुबह 8.00 बजे से दोपहर 1.00 बजे तक: सर्व दर्शन


  • दोपहर 1.00 बजे से दोपहर 2.30 बजे तक: मंदिर बंद


  • दोपहर 2.30 बजे: मंदिर फिर से खुलता है


  • दोपहर 2.30 बजे से शाम 5.30 बजे तक: सर्व दर्शन शाम 5.30 बजे: कामाख्या देवी आरती


  • शाम 6.00 बजे: मंदिर बंद हो जाता है

 

ये पूजा सिर्फ इसी मंदिर में होती हैं


काला जादू पूजा - बुरी नजर के प्रभाव को दूर करने के लिए

वशीकरण पूजा - दूसरे व्यक्ति के मन और विचारों को प्रभावित करने के लिए

बांझ और निसंतान दंपतियों के लिए पूजा - दंपत्ति को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देने के लिए

नवग्रह पूजन - जन्म कुंडली में नवग्रह की स्थिति के बुरे प्रभावों को दूर करने के लिए


असम के मुख्य शहर गुवाहाटी से सीधा जुड़ाव


कामाख्या मंदिर से इंटरनेशनल एयरपोर्ट मात्र 20 किमी है। यहां से गुवाहाटी रेलवे स्टेशन की दूरी महज 8 किमी है। रोड कनेक्टिविटी के लिए असम पर्यटन की बसें चलती हैं।


........................................................................................................
म्हाने शेरोवाली मैया, राज रानी लागे(Mhane Sherawali Maiya Rajrani Laage)

म्हाने प्राणा सु भी प्यारी,
माता रानी लागे,

म्हारा खाटू वाला श्याम(Mhara Khatu Wala Shyam, Mhara Neele Shyam)

म्हारा खाटू वाला श्याम,
ओ म्हारा लीले वाला श्याम,

मेरी वैष्णो मैया, तेरी महिमा अपरम्पार (Meri Vaishno Maiya Teri Mahima Aprampar)

मेरी वैष्णो मैया,
तेरी महिमा अपरम्पार,

म्हारा कीर्तन में रस बरसाओ(Mhara Kirtan Mein Ras Barsao)

म्हारा कीर्तन मे रस बरसाओ,
आओ जी गजानन आओ ॥

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang