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भ्रामरी देवी/ त्रिस्त्रोता शक्तिपीठ, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल (Bhramari Devi / Tristrota Shaktipeeth, Jalpaiguri, West Bengal)

माता सती का बायां पैर

तीस्ता नदी के किनारे बसा त्रिस्त्रोता शक्तिपीठ, माता से भ्रामरी स्वरूप की होती है पूजा 

माता सती का बायां पैर त्रिस्त्रोता नाम की जगह पर गिरा। यह जगह पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी के बोडा मंडल के सालबाढ़ी ग्राम में स्थित है। इस जगह को त्रिस्त्रोता शक्तिपीठ या भ्रामरी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। तीस्ता नदी के किनारे बने इस धाम की देवी भ्रामरी हैं, यहां शिव को अम्बर और भैरवेश्वर कहा जाता है। भ्रामरी को मधुमक्खियों की देवी के रूप में जाना जाता है।


इस मंदिर को भ्रामरी का एक महत्वपूर्ण हृदय चक्र माना जाता है जिसमें 12 पंखुड़ियां हैं। यह मनुष्य के किसी भी प्रकार की बीमारी से उबरने के लिए ढाल या एंटीबॉडी के रूप में कार्य करता है। यहां की जाने वाली कुंडलिनी साधना का मुख्य कारक चक्र है। शास्त्रों के अनुसार मां भ्रामरी लोगों को विभिन्न प्रकार के संक्रमणों और बाहरी हमले से बचने के लिए चक्र में मौजूद हैं।


बांग्लादेश युद्ध से जुड़े हैं मंदिर का संबंध

1970-71 में बांग्लादेश युद्ध के समय रास्ता बनाने वाले एक ठेकेदार के ड्राइवर ने लालपाड़ की साड़ी पहने काले रंग की रहस्यमयी महिला को शाम के अंधेरे में गुम होते देखा। उसके कुछ दिन बाद 1980 में गोजलडोबा निवासी शशिभूषण राय और रामजीवन विश्वास को स्वप्न आया कि मेरी पूजा होनी चाहिए। उसके बाद वे वीरेन राय व सुनील राय सहित गांव के बुद्धिजीवियों को बुलाकर इसकी चर्चा की। 


चर्चा के बाद कामाख्या देवी के अनुरूप माँ भ्रामरी देवी की मूर्ति बनाकर पूजा अर्चना शुरु कर दी गई। मंदिर निर्माण के लिए कमेटी बनाई गई। चंदा की धनराशि से टीन का घर बनाकर पूजा की जाने लगी। वीरेन बाबू कोई और नहीं मन्तादाड़ी अंचल के चौकीदार थे। यहां वार्षिक पूजा शुरु हुई। जोड़ा बड़गाछ की पूजा देखने यहां नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, असम और सिक्किम समेत कई प्रांतों के साधु संतों का आवागमन होने लगा। यहां तांत्रिक और ज्योतिषी भी आने लगे। 


यहां की मिट्टी जांच कर घोषणा की गई कि यह स्थान कुछ और नहीं मां त्रिस्त्रोता महापीठ का अवस्थान है। यह वटवृक्ष की जड़ पर है। इस जगह से कई लोगों के आश्चर्यजनक और अद्भुत अनुभव जुड़े हैं। विद्वानों का मत है कि दुर्गा देवी का बीज ही भ्रामरी देवी का बीज है। भ्रामरी देवी दुर्गा की ही अंश है। यहां नवरात्र में विशेष पूजा अर्चना की जाती है।


स्वर्ग की रक्षा के लिए माता ने लिया भ्रामरी रूप

पुराणों के अनुसार अरुण नाम का एक असुर था। उस असुर ने एक बार स्वर्गलोक पर कब्जा कर लिया और सभी देवताओं को उनके स्वर्गलोक से बाहर निकाल दिया। विद्रोही असुर ने देवताओं की पत्नियों या देवियों को भी अपने अधीन करने का प्रयास किया। तब उन देवियों ने देवी आदिशक्ति से अपनी रक्षा की प्रार्थना की।


देवियों की प्रार्थना से  देवी आदि शक्ति ने एक विशालकाय मधुमक्खी का निर्माण किया। देवी आदि शक्ति ने मधुमक्खियों के झुंड से राक्षस पर हमला किया। मधुमक्खियों ने उस असुर की छाती फाड़कर उसे मार डाला। माता के इसी मधुमक्खी अवतार से वे भ्रामरी देवी के रूप में जानी जाती हैं।


सिलीगुड़ी से 45 किमी दूर स्थित हैं मंदिर 

यह मंदिर सिलीगुड़ी से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां जलपाईगुड़ी के रंगधामाली होकर पहुंचा जा सकता है। उत्तर बंगाल परिवहन निगम की बस दिन में चार बार जलपाईगुड़ी से शांतिपाड़ा बस स्टैंड से बोदागंज को जाती है। बोदागंज से 300 मीटर की दूरी पर मंदिर है। 


जलपाईगुड़ी की कोलकाता और बागडोगरा से रोड कनेक्टिविटी बेहतर है। सिलीगुड़ी भी हावड़ा और सियालदह से जुड़ता है जो पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से सीधे जुड़े हैं।


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