योग शास्त्र (Yog Shaastr)

योग शास्त्र की रचना महर्षि पतंजलि द्वारा मानी जाती है। इस शास्त्र में परमात्मा, प्रकृति और जीवात्मा के संपूर्ण वर्णन के अलावा योग, चित्त, प्राण, आत्मा  की वृत्तियां, नियंत्रण के उपाय, जीव के बंधन का कारण आदि यौगिक क्रियाओं के बारे में भी जानकारी मिलती है। इसके साथ ही योग शास्त्र में बताया गया है कि यौगिक क्रियाओं के जरिए किस तरह से परमात्मा के ध्यान में हम अपनी इंद्रियों का बहिर्गामी विचार से बचा सकते हैं। महर्षि पतंजलि द्वारा लिखे गए योग शास्त्र को चार भाग समाधि, साधन, विभूति और कैवल्य में विभाजित किया गया है।

योग शास्त्र के समाधि भाग में योग का संकेत और लक्ष्य के बारे में भी जानकारी दी गई है जबकि इसके साधन भाग में कर्मफल, क्लेश आदि का वर्णन किया गया है। शास्त्र के विभूति भाग में योग के अंग और उसका परिणाम के साथ अणिमा, महिमा आदि सिद्धियां प्राप्त कैसे करें इस बारे में बताया गया है और कैवल्य भाग में मोक्ष प्राप्त करने के लिए अध्ययन के बारे में जानकारी दी गई है।


अगर हम योग शास्त्र के सार की बात करें तो इसमें प्रकृति के चौबीस भेद एवं आत्मा और ईश्वर के साथ कुल 26 तत्व बताए गए हैं।

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