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वैशेषिक दर्शन शास्त्रों में चतुर्थ नंबर का स्थान रखता है, इस शास्त्र की रचना महर्षि कणाद द्वारा की गई है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दर्शन का विकास 300 ई.पू. के आसपास हुआ है। इस दर्शन में आत्मा के भेद तथा उसमें रहने वाले विशेष गुणों का व्याख्यान किया गया है। वैशेषिक शास्त्र के अनुसार लौकिक प्रशंसा और सिद्धि के साधन को धर्म बताया गया है, इसके अनुसार मानव कल्याण के लिए धर्म का आचरण बेहद जरूरी होता है, जिसमें सात पदार्थ निहित हैं। इन सात पदार्थों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है जिसमें द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य,विशेष, समवाय और अभाव पदार्थ में के अंदर अभाव को रखा गया है। इसके अलावा इसमें नौ प्रकार के द्रव्यों का भी वर्णन मिलता है, जो पृथ्वी, आग, तेज, आकाश, वायु, काल, दिक्, आत्मा और मन हैं।
वैशेषिक शास्त्र में दस अध्याय हैं जिनमें प्रत्येक अध्याय में दो-दो आह्निक तथा 370 सूत्र हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य नि:श्रेयस की प्राप्ति है।
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