ऋषि विश्वामित्र (Rishi Vishvaamitr)

विश्वामित्र प्रसिद्ध सप्तऋषियों और महान ऋषियों में से एक हैं। विश्वामित्र एक ऋग्वैदिक ऋषि हैं जो ऋग्वेद के मंडल ३ के मुख्य लेखक थे। विश्वामित्र के जीवन से जुड़ी अधिकांश कहानियां वाल्मीकि रामायण में वर्णित हैं। विश्वामित्र के जन्म को लेकर एक पौराणिक कथा में कहा गया है कि सत्यवती का विवाह रुचिका नामक एक वृद्ध व्यक्ति से हुआ था जो भृगु वंश में सबसे प्रमुख था। रुचिका को एक ब्राह्मण के गुणों वाला पुत्र चाहिए था, इसलिए उसने सत्यवती को एक बलि ( चरु ) दिया जो उसने इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए तैयार किया था। लेकिन सत्यवती की मां को एक क्षत्रीय गुणों वाला पुत्र चाहिए था, इसलिए उनके अनुरोध पर एक और चरू मिला जिससे क्षत्रिय गुण वाले पुत्र को गर्भ धारण किया जा सके। सत्यवती की मां ने खुद को मिले चरू से सत्यवती क चरू को बदलने के लिए कहा जिसके परिणाम स्वरूप सत्यवती की मां ने विश्वामित्र को जन्म दिया, जो ब्राह्मण के गुणों वाले क्षत्रिय थे और सत्यवती ने जमदग्नि को जन्म दिया, जो क्षत्रीय गुणों वाले ब्रह्माण थे।

एक अन्य कथा के अनुसार विश्वामित्र को जमदग्नि भार्गव ने पढ़ाया था। वाल्मीकि रामायण , बाल कांड का गद्य 51, विश्वामित्र की कहानी से शुरू होता है। विश्वामित्र ऋषि होने के साथ-साथ एक राजा भी थे। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि विश्वामित्र ने ही गायत्री मंत्र की रचना भी की है। ऋषि विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या को भंग किया जाने का प्रसंग बहुत प्रसिद्ध है। उन्होंने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को शरीर के साथ ही स्वर्ग के दर्शन करा दिए थे।  ऋषि होने के पूर्व विश्वामित्र राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था, लेकिन वे हार गए। इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया। इस तरह ऋषि विश्वामित्र के असंख्य किस्से हैं। माना जाता है कि हरिद्वार में आज जहां शांतिकुंज हैं उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इंद्र से रुष्ठ होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी। विश्वामित्र ने इस देश को ऋचा बनाने की विद्या दी है। विश्वामित्र ने ही भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को दिव्य शस्त्रों की विद्या भी दी थी और उन्हीं की वजह से श्री राम और सीता का विवाह हो सका था। कहा जाता है कि एक अकेले ऐसे ऋषि हैं जो अपनी योग्यता के आधार पर ब्रह्मर्षि के पद तक पहुंचे। सभी समय के सबसे महान ऋषि के पद के लिए वशिष्ठ के साथ उनका महाकाव्य संघर्ष एक बहुत ही दिलचस्प कहानी बनाता है। वह जन्म से ब्राह्मण नहीं थे, बल्कि एक क्षत्रिय (योद्धा) थे। युद्ध में हार जाने और फिर ऋषि वशिष्ठ द्वारा क्षमा किए जाने के बाद, राजा पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। उन्हें एहसास हुआ कि तपस्या से प्राप्त शक्ति केवल शारीरिक शक्ति से कहीं अधिक है। उन्होंने अपना राज्य त्याग दिया और वशिष्ठ से भी महान ऋषि बनने की खोज शुरू कर दी। उन्होंने विश्वामित्र नाम धारण कर लिया। अनेक परीक्षणों और हजारों वर्षों की तपस्या के बाद अंततः विश्वामित्र ने ब्रह्मा और वशिष्ठ से ब्रह्मर्षि की उपाधि प्राप्त की। इस आर्टिकल में निहित जानकारी वशिष्ठ जी के जीवन की पूर्ण कथा नहीं, विस्तार से जानने के लिए भक्तवत्सल के ब्लॉग सेक्शन का रुख करें।

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