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महर्षि जमदग्नि की गणना सप्तऋषियों में की जाती है। जमदग्नि ऋषि भृगुवंशी ऋचीक के पुत्र थे। भागवत पुराण के अनुसार, राजा गाधि ने अपनी बेटी का विवाह ऋषि ऋचीक से करने के लिए उनके सामने एक शर्त रखी। जिसके अनुसार ऋचीक को सत्यवती से विवाह करने के लिए काले कानों वाले एक हजार सफेद घोड़े लाने को कहा गया। ऋचीक, वरुण की सहायता से घोड़े ले आए। जिससे प्रसन्न होकर राजा गाधि ने ऋचीक को सत्यवती से विवाह करने की अनुमति दे दी। इसके बाद ऋषि जमदग्नि का जन्म हुआ। बड़े होकर जमदग्नि ने कड़ी मेहनत से पढ़ाई की और वेदों के अध्ययन में पांडित्य प्राप्त किया। उन्होंने बिना किसी औपचारिक निर्देश के अपने पिता के मार्गदर्शन में शस्त्र विज्ञान के बारे में ज्ञान प्राप्त किया था। ऋषि का दर्जा प्राप्त करने के बाद, जमदग्नि ने कई पवित्र स्थलों का दौरा किया और अंत में सूर्यवंश के राजा प्रसेनजित के महल पहुंचे। जमदग्नि को राजा की बेटी राजकुमारी रेणुका से प्यार हो गया और उन्होंने राजा से शादी के लिए राजकुमारी हाथ मांगा। इसके बाद दोनों ने विवाह किया। ऋषि जमदग्नि की पत्नि रेणुका एक पतिव्रता एवं आज्ञाकारी स्त्री थी वह अपने पति के प्रती पूर्ण निष्ठावान थीं। जमदग्नि गोत्र के ब्राह्मण इन्ही ऋषि जमदग्नि के वंशज हैं। भृगुपुत्र महर्षि जमदग्नि ने गोवंश की रक्षा पर ऋग्वेद के 16 मंत्रों की रचना की है। इन रचनाओं में महर्षि जमदग्नि ने गोवंश के पालन-पोषण, रक्षा और गोवंश के पालन के बारे में विस्तार से बताया है। इसके अलावा केदारखंड के अनुसार, महर्षि जमदग्नि आयुर्वेद और चिकित्साशास्त्र के भी विद्वान थे। भगवान परशुराम द्वारा जब अपनी माता की गर्दन काट दी गई थी तब महर्षि जमदग्नि ने मंत्रों, आयुर्वेद और चिकित्साशास्त्र के माध्यम से उनकी गर्दन वापस जोड़ दी और फिर से जीवित कर दिया। ऋषि जमदग्नि के कहने पर उनके पुत्र परशुराम ने अपनी मां की गर्दन काट दी थी, जिसके बारे में भी कई कथाएं प्रचलित हैं। ऋषि जमदग्नि से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए आप भक्तवत्सल के ब्लॉग सेक्शन में जा सकते हैं।
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