यमुना नदी (Yamuna Nadi)

यमुना नदी गंगा की सबसे लंबी और दूसरी सबसे बड़ी सहायक नदी है। यमुना नदी का उद्गम स्थान यमुनोत्री है। ऐसा कहा जाता है कि यमुनोत्री दर्शन के बिना तीर्थ यात्रियों की यात्रा अधूरी रहती है। अपने उद्गम स्थान से आगे बढ़कर कई मील तक विशाल चट्टानों और पहाड़ों से बहती हुई यमुना अपने तेज प्रवाह के साथ प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पहुंचती है और यहां आकर गंगा नदी में विलीन हो जाती है। क्षेत्रीय भाषा में यमुना को जमुना और जमना भी कहा जाता है। भारत की राजधानी दिल्ली को चारों तरफ से घेरने वाली इस नदी का जल दिल्ली के अलावा देश के कई हिस्सों में बहता है। हालांकि ये उत्तर भारत की प्रमुख नदी होने के बावजूद ज्यादा मूल रूप से उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश राज्यों में बहती है। गंगा नदी के साथ यह भी देश की सबसे पवित्र नदियों में से एक है।


हिंदू पौराणिक कथाओं में यमुना नदी का एक विशेष स्थान है। यमुना का इतिहास भगवान कृष्ण के बचपन और युवावस्था से जुड़ा हुआ है, जहां श्री कृष्ण ने कई दिव्य लीलाएं रची थीं। पौराणिक कथाओं के अनुसार यमुना में स्नान करने से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं और शरीर के साथ मन भी शुद्धता आती है, साथ ही आध्यात्मिक स्वास्थ्य में भी सुधार होता है। यमुना नदी का उल्लेख प्रमुख रूप से हिंदू धार्मिक ग्रंथ ऋग्वेद और अथर्ववेद में मिलता है।


यमुना नदी की उत्पत्ति

महाभारत में देवी यमुना का जन्म सूर्य देव और उनकी पत्नी संजना (बाद के साहित्य में संज्ञा) से हुआ है। यमुना यम (यमराज) की जुड़वां बहन हैं। शास्त्रों में यमुना को सूर्य की पसंदीदा संतान बताया गया है जिस वजह से उन्हें सूर्यतनया, सूर्यजा और रविनंदिनी भी कहा जाता है। कथा के अनुसार संज्ञा देवी पति सूर्य की तेज किरणों को न सह पाईं और उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बन कर रहने लगीं थीं। संज्ञा की इसी छाया से ताप्ती नदी तथा शनी देव का जन्म भी माना जाता है। धीरे-धीरे छाया यानी संज्ञा का 'यम' और 'यमुना' का व्यवहार बदलने लगा और वह दोनों से सौतेली माता की तरह व्यवहार करने लगीं। छाया की इस बात से दुखी होकर यम ने अपनी एक नई नगरी बसाई जिसे आगे चलकर यमपुरी कहा गया। यमपुरी में पापियों को दण्ड देते हुए भाई यम को देखकर यमुना बहुत दुखी हुईं और रोने लगीं, यमुना के लगातार रोने से उनके आसुओं का प्रवाह तेज हो गया और उसने एक नदी का रूप धारण कर लिया, यही नदी आगे चलकर यमुना नदी के नाम से प्रसिद्ध हुई।


यमुना नदी का श्री कृष्ण से है गहरा नाता

भगवान श्री कृष्ण के लीलाकाल में यमुना नदी का विशेष महत्व है। जब कृष्ण के पिता वासुदेव नवजात कृष्ण को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए  यमुना नदी पार कर रहे थे तो उन्होंने यमुना से रास्ता देने के लिए कहा था, लेकिन यमुना ने स्वीकार नहीं किया और अपना जलस्तर बढ़ाती रहीं, अतंत: भगवान कृष्ण के पग पखारने के बाद यमुना दो धाराओं में बंट गई और वासुदेव का रास्ता दे देिया। यह पहली बार था जब यमुना ने कृष्ण के दर्शन किए थे, इसके बाद भगवान कृष्ण ने यमुना के किनारे और नदी में कई लीलाएं करीं और आगे चलकर श्री कृष्ण और यमुना का विवाह भी संपन्न हुआ। ऐसी मान्यता है कि यमुना नदी पहली काफी रौद्र हुआ करती थीं लेकिन कृष्ण के पैर छूने बाद वे एकदम शांत हो गईं और आज भी यमुना एक शांत नदी के तौर पर ही जानी जाती हैं। एक धार्मिक मान्यता के अनुसार कृष्ण के बचपन के दिनों में यमुना नदी जहरीली थीं, क्योंकि पांच सिर वाला कालिया नाग रहता था, जो नहीं चाहता था कि मनुष्य यमुना के पानी का सेवन करें। श्रीकृष्ण के कालिया दहन करने के बाद यमुना का पानी साफ हो गया और लोगों ने इस जल को पीना शुरु कर दिया।


यमुना नदी में गर्म पानी का कुंड

यमुना नदी के उद्गम स्थल यमुनोत्री में एक गर्म पानी का कुंड है। इस कुंड को सूर्य कुंड के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि यह कुंड सूर्य देवता और सूर्य की संतान को समर्पित है। सूर्य कुंड में पानी इतना गर्म होता है कि लोग इसमें चाय और चावल भी आसानी से बना सकते हैं। सूर्य कुंड के पानी का तापमान लगभग 88 डिग्री सेल्सियस रहने का अनुमान है। सूर्य कुंड में तैयार चावल और आलू यमुनोत्री मंदिर में देवता को चढ़ाए जाते हैं।


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