विभीषण ऋषि विश्रवा और राक्षसी कैकसी के पुत्र थे। वे एक धर्मपरायण व्यक्ति थे जो हमेशा सत्य के मार्ग पर चलते थे। हालांकि आज किसी दूसरी जगह पर अपने घर के राज खोलने वाले व्यक्ति को विभीषण की संज्ञा दी जाती है। कथाओं के अनुसार पूरी लंका में अकेले विभीषण ही ऐसी व्यक्ति थे जो लंका के हित में सोचते थे और रावण को श्री राम से बैर न करने की सलाह देते थे लेकिन रावण ने उनकी एक भी बात न सुनते हुए अपमानित कर लंका से निकाल दिया था। विभीषण ने राष्ट्रहित के लिए रावण का विरोध किया और भाई तथा कुल के द्रोही होने के कलंक के साथ ही मातृभूमि के हित में कार्य करते हुए सत्य का साथ दिया। रावण के छोटे भाई विभीषण को चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है। विभीषण ने अपने सगे भाई रावण के विरुद्ध जाकर धर्म के लिए भगवान राम का साथ दिया था। इसलिए उन्हें अमरता का वरदान मिला। देखा जाए तो विभीषण अश्वत्थामा के विपरीत हैं- अश्वत्थामा वह चिरंजीवी है जिसने अपने मित्र के प्रति वफादार रहकर बुराई को चुना था. जबकि विभीषण ने अपने भाई के प्रति प्रेम के बावजूद अच्छाई का पक्ष चुना। ऐसा करने पर उन्हें पुरस्कार मिला और वे पृथ्वी पर बरदान के साथ मौजूद हैं जबकि अश्वत्थामा श्राप की वजह से धरती पर भटक रहे हैं।
आत्मा के कारक सूर्य देव हर महीने एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण करते हैं। सूर्य देव के इस राशि परिवर्तन को ही संक्रांति कहते हैं। हर संक्रांति का अपना खास महत्व होता है और इसे धूमधाम से मनाया जाता है।
सकट चौथ व्रत मुख्यतः संतान की लंबी उम्र, उनके अच्छे स्वास्थ्य और तरक्की की कामना के लिए रखा जाता है। इस पर्व को गौरी पुत्र भगवान गणेश और माता सकट को समर्पित किया गया है। इसे भारत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे:- तिलकुट चौथ, वक्र-तुण्डि चतुर्थी और माघी चौथ।
हिंदू धर्म में संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि से जुड़े कई व्रत-त्योहार हैं। जिनमें से सकट चौथ का पर्व विशेष माना जाता है। यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन महिलाएं संतान की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
अपने इष्ट देवता की पूजा-अर्चना करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं। हर व्यक्ति का कोई न कोई इष्ट देव होता है। कोई भगवान विष्णु को मानता है, तो कोई भगवान शिव को।