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जयंती देवी मंदिर, चंडीगढ़ (Jayanti Devi Temple Chandigarh Punjab)

दर्शन समय

डाकू ने शुरू की थी जयंती देवी मंदिर में पूजा, रविवार - मंगलवार को दर्शन का विशेष महत्व


जयंती देवी मंदिर मोहाली के जयंती माजरी गांव की पहाड़ी पर स्थित है। आठ सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित मां जयंती देवी सुख-समृद्धि से लेकर श्रद्धालुओं की हर मनोकामना को पूरा करती है। आम दिनों में भी बड़ी संख्या में लोग माता के दर्शन करने के लिए पहुंचते है। यहां पर सबसे ज्यादा भक्तों की संख्या रविवार और मंगलवार को होती है। मान्यता है कि यहां सच्चे दिल से मांगी हर मुराद पूरी होती है।


हिमाचल प्रदेश से लाई गई थी माता की पिंडी


मंदिर का इतिहास बड़ा दिलचस्प है। इसका निर्माण राजा गरीब दास ने कराया था। मंदिर के पुजारियों ने बताया कि माता की पिंडी हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से 17वीं सदी के तत्कालीन हथनौर राजवाड़े के राजकुमार की शादी के समय लाई गई थी। हथनौर के राजकुमार की शादी कांगड़ा की राजकुमारी के साथ हुई थी।


पहले राजकुमारी फिर डाकू ने शुरू की पूजा


शादी के बाद पिंडी हथनौरा राज्य की नदी के किनारे स्थापित की गई। राजकुमारी की मौत के बाद माता की पूजा बंद हो गई और उस समय के डाकू गरीब दास ने पूजा शुरू की। पूजा के दौरान डाकू गरीब दास पिंडी को नदी के किनारे के उठाकर शिवालिक की पहाड़ी पर स्थापित किया। डाकू गरीब दास राजा बन गया और शिवालिक की पहाड़ी के नीचे माजरी गांव की स्थापना हुई और आज मंदिर का नाम जयंती माजरी से जाना जाता है।


गांव के लोग एक मंजिल से ज्यादा घर नहीं बनाते


माता जयंती देवी के प्रति श्रद्धा के प्रतीक के रूप में जयंती मांजरी के ग्रामीण अपने घरों का निर्माण केवल एक मंजिल तक ही करते है। मंदिर के तल पर एक प्राचीन कुआं है जो पूरे साल मीठा पानी देता है। जयंती देवी को बेहद संवेदनशील और दयालु देवी माना जाता है जो अपने भक्तों की प्रार्थना सुनती है।


11 वीं पीढ़ी में स्थापित हुई थी मूर्ति 


मंदिर में प्रवेश पहाड़ी की तलहटी में एक विशाल द्वार से होता है। यहां से लगभग 100 सीढ़ियां मंदिर परिसर तक जाती है। ऊपर चढ़ते ही जलकुंड दिखाई देता है, जो भारतीय मंदिरों की एक पारंपरिक विशेषता है। अन्य दो तरफ पहाड़ी की चट्टानी दीवार से घिरा हुआ है। मंदिर ऊंची चोटी पर है दो विशाल स्तंभ द्वारा समर्थित है। गर्भगृह के अंदर देवी की पत्थर की मूर्ति है। बाहर के आलों में भगवान शिव, भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी, देवी बाल सुंदरी और स्थानीय देवता लोकदा देव की मूर्तियां हैं। 


फरवरी में पूर्णिमा पर यहां भव्य मेला लगता है और अगस्त में छोटा मेला लगता है। मंदिर का प्रबंधन दो समीतियों द्वारा किया जाता है। दोनों समितियां हर रविवार और मेले के दौरान भंडारा का आयोजन करती है। मंदिर को सरकारी सहायता नहीं मिलती है और आय का एकमात्र साधन श्रद्धालुओं का अंशदान है। पुजारी की 11वीं पीढ़ी, जो मूल रूप से मूर्ति के साथ कांगड़ा से आई थी, अब मंदिर के पवित्र कर्तव्यों का निर्वहन करती है। पुजारी का निवास भी मंदिर परिसर के भीतर है।


कैसे पहुंचे मंदिर


हवाई मार्ग - मंदिर जाने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा चंडीगढ़ है। यहां से आप मंदिर तक के लिए टैक्सी किराए पर ले सकते है।

रेल मार्ग - चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन शहर का प्रमुख रेलवे स्टेशन है और यहां प्रमुख शहरों से ट्रेने आती हैं। यहां से आप ऑटो रिक्शा या टैक्सी लेकर मंदिर पहुंच सकते है।

सड़क मार्ग - चंडीगढ़ से बस सेवाएं बहुत अच्छी हैं। आर चंडीगढ़ की प्रमुख बस स्टैंड से बस पकड़ कर मंदिर पहुंच सकते हैं। अपनी कार से भी आप आसानी से मंदिर तक पहुंच सकते है। क्योंकि चंडीगढ़ के लिए प्रमुख शहरों से रोड़ कनेक्टिविटी अच्छी है। 


डिसक्लेमर

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