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सनातन धर्म में वरुण देव को जल का देवता माना जाता है। ये समुद्र और नदियों के रक्षक भी माने जाते हैं। वरुण देव जलमंडल के सभी रूपों पर शासन करते हैं। वरुण को ज्ञान और विवेक का देवता भी माना जाता है। वे सत्य और असत्य में अंतर करने की क्षमता रखते हैं। पुराणों के अनुसार, वरुणदेव पश्चिम दिशा के अधिपति भी हैं। वेदों में वरुणदेव को सत्य और व्यवस्था के रक्षक के रूप में जाता है।
वरुण देव पूरे ब्रह्मांड में व्यवस्था बनाए रखते हैं। आपको बता दें, प्राचीन समय में वरुण देव की पूजा विशेष रूप से उन क्षेत्रों में की जाती थी जो जल स्रोतों के निकट होते थे। इतना ही नहीं, वरुणदेव शपथों और वचनों के पालनकर्ता भी हैं। यदि कोई जल को साक्षी मानकर शपथ लेकर किसी कार्य को करने का वचन देता, तो वरुण देवता उसकी निगरानी करते हैं कि वह उस शपथ का पालन करता है या नहीं।
अब ऐसे में अगर आप वरुण देव की पूजा कर रहे हैं, तो उनकी पूजा किस विधि से करने से लाभ हो सकता है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य त्रिपाठी जी द्वारा बताए गए जानकारी साझा कर रहे हैं। इसलिए आप इस लेख को विस्तार से पढ़ें।
पूजा के बाद कलश का जल अशोक के पत्ते से पूरे घर में छिड़कें।
अगर आप वरुणदेव की पूजा-अर्चना कर रहे हैं, तो बुधवार के दिन और पूर्णिमा तिथि पर कर सकते हैं। इसके अलावा आप अपने पंडित जी से जानकारी ले सकते हैं।
जल जीवन का आधार है और वरुणदेव जल के देवता हैं। उनकी पूजा करने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है और रोगों से मुक्ति मिलती है। वरुण देव की पूजा करने से मन शांत होता है और तनाव कम होता है। जल संबंधित समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए वरुण देव की पूजा कर सकते हैं। वरुणदेव को समुद्र के स्वामी के रूप में पूजा जाता है, जिससे व्यापार, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। अगर घर में जल से संबंधित कोई वास्तु दोष है तो वरुण देव की पूजा करने से इन दोषों का निवारण हो सकता है।
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