शादी की सालगिरह सिर्फ एक तारीख नहीं होती, यह जीवन के उस पवित्र रिश्ते की याद दिलाती है, जिसमें दो आत्माएं साथ चलने का संकल्प लेती हैं। जैसे-जैसे साल दर साल यह बंधन मजबूत होता जाता है, वैसे-वैसे इस दिन का आध्यात्मिक महत्व भी बढ़ जाता है। हिन्दू संस्कृति में हर शुभ अवसर पर पूजा का विशेष स्थान है। ऐसे में सालगिरह के दिन कुछ खास पूजन विधियों को अपनाकर वैवाहिक जीवन में प्रेम, विश्वास और समृद्धि को और भी मजबूत किया जा सकता है।
शादी की सालगिरह पर सबसे शुभ मानी जाती है लक्ष्मी-नारायण पूजा। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की संयुक्त उपासना से घर में सुख-समृद्धि और वैवाहिक सौहार्द बना रहता है। इस दिन पति-पत्नी दोनों को साथ बैठकर इस पूजन को करना चाहिए। पूजा में पीले फूल, पंचामृत, रोली, चावल, दीपक और तुलसी पत्तों का उपयोग करें। “ॐ लक्ष्मी नारायणाय नमः” मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें। इसके बाद भोग अर्पण कर आरती करें।
भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा को उमा-महेश्वर पूजन कहा जाता है। यह पूजा पति-पत्नी के बीच सामंजस्य और प्रेम को बढ़ाने वाली मानी जाती है। इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र अर्पित करें और माता पार्वती को सिंदूर और चूड़ियां अर्पित करें। “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ उमामहेश्वराय नमः” मंत्रों का जाप करें।
अगर सालगिरह किसी पूर्णिमा या गुरुवार को पड़ रही हो, तो सत्यनारायण व्रत कथा का आयोजन करना अत्यंत फलदायी होता है। इस कथा में संकल्प लेकर भगवान विष्णु की कथा सुनी जाती है, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और परिवार पर किसी भी प्रकार का संकट नहीं आता।
कुछ दंपती इस दिन को और भी पावन बनाने के लिए तुलसी-विवाह की तरह प्रतीकात्मक रीति से एक-दूसरे को माला पहनाकर साथ निभाने का संकल्प लेते हैं। यह परंपरा नवदंपतियों के लिए भी प्रेरणादायक होती है और रिश्ते को एक नई ऊर्जा देती है।
शादी की सालगिरह के दिन जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या धन का दान करना बहुत शुभ माना जाता है। कई दंपती इस दिन किसी मंदिर, गौशाला या वृद्धाश्रम में जाकर सेवा करते हैं, जो उनके जीवन में पुण्य फल प्रदान करता है।
वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी का व्रत मनाया जाता है, जिसे हिंदू धर्म में अत्यंत फलदायक माना गया है। यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित है, जो विघ्नहर्ता, बुद्धि के दाता और मंगलकर्ता हैं।
वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी का व्रत मनाया जाता है, जिसे हिंदू धर्म में अत्यंत फलदायक माना गया है। यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित है, जो विघ्नहर्ता, बुद्धि के दाता और मंगलकर्ता हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, भानू सप्तमी हर वर्ष कृष्ण पक्ष की सप्तमी को मनाई जाती है और इसे सूर्य सप्तमी भी कहा जाता है। इस दिन भक्त सूर्य देव की उपासना करते हैं।
हिंदू धर्म में सभी एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है। हर महीने में दो एकादशी की तिथियां आती हैं, जो भगवान विष्णु को समर्पित होती हैं और वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है।