सर्पों की देवी मनसा की पूजा कैसे करें?

सर्पों की देवी मनसी की पूजा किस विधि से करें, जानिए पूजा विधि और इसका महत्व


पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे झारखंड के कसमार प्रखंड सहित आसपास के गांवों में सर्पों की देवी मां मनसा की पूजा बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। हर साल गांवों में जगह-जगह मां मनसा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है। इस त्योहार की तैयारी के लिए लोग कई दिन पहले से जुट जाते हैं और प्रतिमा निर्माण का काम लगभग 15-20 दिन पहले से शुरू हो जाता है। गांवों में मां मनसा की पूजा इतने उत्साह के साथ मनाने के पीछे कई धार्मिक मान्यताएं हैं। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं। 


मनसा देवी की पूजा का महत्व


कृषि प्रधान देश होने के कारण भारत में अधिकांश ग्रामीण जनता का जीवन खेती से जुड़ा हुआ है। खेती के काम में किसानों को अक्सर सांप-बिच्छुओं जैसे जहरीले जीवों का सामना करना पड़ता है। खेतों, तालाबों और जंगलों में इनका निवास होता है। इसलिए ग्रामीणों के लिए सांप-बिच्छुओं का डर हमेशा बना रहता है।


ऐसी मान्यता है कि मां मनसा, जो कि नाग देवता की बहन हैं, सांपों की देवी हैं। लोग मानते हैं कि मां मनसा की पूजा करने से सांप-बिच्छुओं का डर दूर होता है और वे इन जहरीले जीवों से सुरक्षित रहते हैं। इसी विश्वास के कारण ग्रामीण मां मनसा की पूजा बहुत श्रद्धा और भक्ति के साथ करते हैं।

मां मनसा की पूजा का एक महीने तक चलने वाला त्योहार होता है। इस दौरान विशेष रूप से बकरा और बत्तख की बलि दी जाती है। मान्यता है कि यह बलि मां मनसा को प्रसन्न करती है और वे अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। अगले दिन, इस बलि के मांस को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।


मनसा देवी की पूजा में क्यों देते हैं बत्तख की बलि


मनसा पूजा में बत्तख की बलि देने की परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारण माना जाता है। पहले, किसान खेतों में काम करते हुए अक्सर खेत का पानी पीते थे। इस पानी में कई तरह के कीटाणु और कीड़े होते थे जो बीमारियां पैदा कर सकते थे। लोगों का मानना था कि बत्तख का मांस और खून इन कीटाणुओं को मारने में मदद करता है। इसलिए, खेती के बाद मनाई जाने वाली मनसा पूजा में बत्तख खाने की परंपरा शुरू हुई ताकि किसान स्वस्थ रह सकें।


मनसा देवी की कथा पढ़ें


मनसा देवी की उत्पत्ति और शक्तियों से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं, जिनमें से राजा चंद्रधर की कथा सबसे प्रसिद्ध है। कथा के अनुसार, एक समय माता पार्वती ने काली का भयंकर रूप धारण कर असुरों का संहार किया था। इस युद्ध में नागलोक के राजा वासुकी की बहन भी मारी गई। वासुकी के दुःख को देखकर भगवान शिव ने अपने मस्तक से मनसा देवी को उत्पन्न किया और उन्हें वासुकी को बहन स्वरूप दिया।


मनसा देवी में अद्भुत शक्तियां थीं। वे बेहद जहरीली थीं और उनका ताप सहन करना असंभव था। वासुकी मनसा को लेकर नागलोक जा रहे थे, लेकिन रास्ते में मनसा का जहरीला ताप सहन नहीं कर पाए और बेहोश हो गए। शिव जी ने पंचकोश क्रिया से मनसा को युवावस्था में पहुंचा दिया।


मनसा देवी ने पाताल लोक में अपना अधिकार जमाना चाहा और शिव परिवार की तरह अपनी पूजा करवाई जाना चाहती थीं। शिव जी ने उन्हें धरती पर अपने भक्त राजा चंद्रधर के पास जाने को कहा। मनसा ने राजा चंद्रधर को बलपूर्वक अपनी पूजा करवाई, लेकिन राजा चंद्रधर ने शिव जी के अलावा किसी और देवता की पूजा करने से मना कर दिया। मनसा देवी क्रोधित हो गईं और राजा चंद्रधर के सातों पुत्रों को मार डाला। 


राजा की पत्नी ने मनसा देवी से प्रार्थना की और उनके आशीर्वाद से एक पुत्र हुआ। जिसका नाम लक्ष्मीचंद था। लक्ष्मी चंद्र की शादी एक सती साध्वी से हुई, लेकिन मनसा देवी को वहां भी अपमानित होना पड़ा। उसके बाद फिर मनसा ने शिव से बड़ी प्रार्थना की। शिव जी बहुत दयालु थे, उन्होंने मनसा की बात मान ली और राजा चंद्रधर के सातों बेटों को वापस जीवनदान दे दिया। इसके बाद, शिव जी ने बाहुल्या को कहा कि वह मनसा देवी को फूल चढ़ाकर पूजा करे। शिव जी ने मनसा को वरदान दिया कि लोग उन्हें देवी के रूप में पूजेंगे और जो कोई भी उनकी पूजा करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी।


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