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शादी से पहले जब लड़का-लड़की की कुंडली मिलाई जाती है, तो कई बार उसमें दोष या मेल की असमानता सामने आती है। ऐसे में वैवाहिक जीवन में आने वाली अड़चनों से बचने के लिए कुछ खास पूजा और उपाय किए जाते हैं। आइए जानते हैं उन प्रमुख अनुष्ठानों के बारे में, जिन्हें शास्त्रों में कुंडली दोष शांति के लिए प्रभावी माना गया है।
अगर एक की कुंडली में मंगल दोष हो और दूसरे की नहीं, तो मंगल भात पूजा कराई जाती है। इसके अलावा, कुंभ विवाह, पीपल विवाह या शालिग्राम विवाह जैसे प्रतीकात्मक विवाह भी किए जाते हैं, ताकि मंगली दोष का प्रभाव कम हो।
अगर कुंडली में ग्रहों की स्थिति अनुकूल न हो या आपसी मेल में बाधा हो रही हो, तो नवग्रह शांति पूजा कराना शुभ माना जाता है। इससे सभी 9 ग्रहों का संतुलन स्थापित होता है और रिश्तों में सामंजस्य आता है।
विवाह से पहले कुंडली के दोषों की शांति के लिए रुद्राभिषेक या शिव-पार्वती विवाह की पूजा की जाती है। इससे न सिर्फ दोषों की शुद्धि होती है, बल्कि जीवनसाथी के साथ स्थिर और सुखी वैवाहिक जीवन का मार्ग भी प्रशस्त होता है।
जब कुंडली में गुरु और राहु या गुरु और केतु की युति हो, तो इसे गुरु चांडाल दोष कहा जाता है। इसके निवारण के लिए गुरु शांति हवन और मंत्र जाप किया जाता है, ताकि विवाह संबंधी अड़चनें दूर हो सकें।
कालसर्प दोष हो तो – विशेष पूजा कराएं
अगर कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाएं, तो कालसर्प दोष बनता है।
इससे शादी में देरी, मतभेद और मानसिक तनाव की आशंका रहती है। इसके निवारण के लिए त्र्यंबकेश्वर (नासिक), उज्जैन जैसे तीर्थस्थलों पर विशेष पूजा की जाती है।
जन्म कुंडली में जब ग्रहों की स्थिति अशुभ होती है, या पाप ग्रहों (जैसे शनि, मंगल, राहु, केतु) का प्रभाव अधिक होता है, तो उसे दोष माना जाता है। अक्सर यह दोष हमारे पिछले जन्मों के कर्मों का परिणाम होते हैं।
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