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भगवान चक्रधर 12वीं शताब्दी के एक महान तत्त्वज्ञ, समाज सुधारक और महानुभाव पंथ के संस्थापक थे। महानुभाव धर्मानुयायी उन्हें ईश्वर का अवतार मानते हैं। उनका जन्म बारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में, गुजरात के भड़ोच में हुआ था। उनका जन्म नाम हरीपालदेव था। उन्होंने वैदिक परंपरा को चुनौती देते हुए एक नया धार्मिक पंथ, महानुभाव पंथ की स्थापना की।
इस पंथ में सभी को समान माना जाता था, चाहे वे किसी भी जाति या वर्ग के हों। उन्होंने स्त्री-शूद्रों को भी मोक्ष का अधिकार दिया। आपको बता दें, महानुभाव पंथ का मुख्य ग्रंथ 'लीलाचरित्र' है, जो चक्रधर स्वामी के जीवन और उपदेशों पर आधारित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि चक्रधर स्वामी भगवान विष्णु के स्वरूप हैं। अब ऐसे में इनकी पूजा किस विधि से करें औप पूजा का महत्व क्या है। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
भगवान चक्रधर महानुभाव पंथ के संस्थापक हैं और उन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। इनकी पूजा के लिए सामग्री के बारे में विस्तार से जान लें।
भगवान चक्रधर, जिन्हें भगवान विष्णु का एक रूप माना जाता है, की पूजा का महत्व हिन्दू धर्म में बहुत अधिक है। चक्रधर शब्द का अर्थ होता है "चक्र धारण करने वाला" और भगवान विष्णु को अक्सर "सुदर्शन चक्र" धारण करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र न केवल उनका अस्तित्व, बल्कि धर्म और सत्य की रक्षा का प्रतीक है। यह चक्र पापियों और असुरों पर विजय पाने और संसार में सदाचार की स्थापना का उपाय माना जाता है। चक्रधर की पूजा से जीवन में बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। जो व्यक्ति इस चक्र की पूजा करता है, वह हर प्रकार के संकट और मानसिक परेशानियों से मुक्त हो सकता है।
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