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सनातन धर्म में हरिहर में हरि से आश्य है भगवान विष्णु और हर यानी कि भगवान शिव। दोनों एक दूसरे के आराध्य हैं। इनकी पूजा करने से व्यक्ति का भाग्योदय होता है और जातकों को उत्तम परिणाम मिलते हैं। हरिहर को शक्ति और शौर्य का प्रतीक माना जाता है। विष्णु के संरक्षण और शिव के शक्तियों का संयुक्त स्वरूप होने के कारण, हरिहर को अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है।
हरिहर का स्वरूप सृष्टि और विनाश के बीच संतुलन को दर्शाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ, तब विष्णु और शिव ने मिलकर हरिहर का रूप धारण किया था। कुछ अन्य कथाओं में बताया गया है कि हरिहर ने ब्रह्मांड की रक्षा के लिए कई बार अवतार लिया था। अब ऐसे में हरिहर की पूजा किस विधि से करनी चाहिए और इनकी पूजा का महत्व क्या है। इसके बारे में भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
हरिहर पूजा, भगवान विष्णु और भगवान शिव की संयुक्त पूजा है। यह एक विशेष और पवित्र अनुष्ठान है। इस पूजा के लिए कुछ आवश्यक सामग्री विस्तार से जान लें।
हरिहर हिंदू धर्म में भगवान विष्णु हरि और भगवान शिव हर के संयुक्त स्वरूप को कहा जाता है। यह स्वरूप हिंदू धर्म में एकता और सद्भाव का प्रतीक है। हरिहर पूजा में विष्णु और शिव दोनों की उपासना की जाती है। विष्णु पालनकर्ता हैं, जबकि शिव संहारक हैं।
हरिहर स्वरूप में, दोनों देवता एक साथ विराजमान होते हैं, जो सृष्टि, पालन और संहार के चक्र को दर्शाता है। हरिहर पूजा सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियों के बीच संतुलन का प्रतीक है। हरिहर की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी हो सकती है और व्यक्ति को उत्तम परिणाम भी मिल सकते हैं।
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