भक्त वत्सल पर नवरात्रि विशेषांक की श्रृंखला में हम पहुंच गए हैं, दुर्गाजी की नौवें स्वरूप और शक्ति का पर्याय माता सिद्धिदात्री की आराधना तक। हमने आपको अब तक मैय्या के पहले आठों रूपों के दर्शन लाभ, पूजन विधि और उत्पत्ति से संबंधित पौराणिक कथाओं के बारे में बताने का प्रयत्न किया है। भक्त वत्सल पर आप मैया रानी के बारे में और भी अधिक जानकारी और शक्तिपीठों के विषय में विस्तार से पढ सकते हैं। फिलहाल नवरात्रि विशेषांक के इस ग्यारहवें लेख में हम आपको नवरात्रि के अंतिम दिन मैय्या के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री के बारे में बताने जा रहे हैं।
सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली मां सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्र में नौवें और अंतिम दिन की जाती है। नवरात्रि के नौवें दिन पूजे जाने वाले मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप के नाम से ही स्पष्ट है कि मां सिद्धिदात्री यानी सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली देवी हैं। यह मां दुर्गा का आखिरी स्वरूप माना गया है जिसे नौवीं शक्ति भी कहा जाता है।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियाँ मां की आराधना से प्राप्त की जा सकती हैं। वहीं ब्रह्मवैवर्त पुराण में यह संख्या अठारह है।
माँ सिद्धिदात्री ने सिर्फ अपने भक्तों और साधकों को ही सिद्धियां नहीं दी है, बल्कि देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने भी मां की कृपा से अष्ट सिद्धियों को प्राप्त किया था। भगवान शिव के अर्द्धनारीश्वर स्वरुप का आधा रूप मैय्या सिद्धिदात्री का ही है। हिमाचल के नंदा पर्वत को लेकर मान्यता है कि यहीं देवी की कृपा से भगवान शिव को आठ सिद्धियों प्राप्त हुई थीं। कहते हैं यहां मां की आराधना करने से सभी सिद्धियों को प्राप्त किया जा सकता है।
माँ सिद्धिदात्री की चार भुजाएं हैं और वाहन सिंह है। कमलपुष्प पर विराजमान मां सिद्धिदात्री के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प धारण किए हुए है। साथ ही चार भुजाओं वाली मां सिद्धिदात्री लाल साड़ी में अपने हाथों में सुदर्शन चक्र, शंख, गदा धारण किए हुए हैं। सिर पर मुकूट और चेहरे पर मंद मुस्कान लिए मां सिद्धिदात्री सभी को नवरात्रि की नवमी तिथि पर दर्शन देती हैं।
बुद्ध पूर्णिमा, जिसे बुद्ध जयंती भी कहा जाता है, बौद्ध धर्म का प्रमुख पर्व है। यह दिन भगवान गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण की तिथि के रूप में मनाया जाता है। इस साल बुद्ध पूर्णिमा 12 मई, सोमवार को है।
नारद जयंती, देवर्षि नारद के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। इस वर्ष यह पर्व 13 मई, मंगलवार को मनाया जाएगा। यह दिन वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है, जो देवर्षि नारद के जन्म का प्रतीक है।
हिंदू धर्म के महान ऋषि और भगवान विष्णु के परम भक्त, नारद मुनि की जयंती को 'नारद जयंती' के रूप में मनाया जाता है। यह दिन वैषाख मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को पड़ता है, जो इस साल 13 मई को है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, वृषभ संक्रांति एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटना है, जब सूर्य देव एक राशि से निकलकर अगली राशि में प्रवेश करते हैं। वृषभ संक्रांति उस दिन को कहा जाता है जब सूर्य मेष राशि से निकलकर वृषभ राशि में प्रवेश करते हैं।