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जानें ज्ञान, धर्म, नीति तथा मोक्ष के कारक ग्रह देवगुरु बृहस्पति के बारे में , Gyaan, dharm, neeti aur moksh ke kaarak grah devaguru brhaspati ke baare mein jaanen

जानें ज्ञान, धर्म, नीति तथा मोक्ष के कारक ग्रह देवगुरु बृहस्पति के बारे में , Gyaan, dharm, neeti aur moksh ke kaarak grah devaguru brhaspati ke baare mein jaanen

देवगुरु बृहस्पति की बात करें तो इन्हें न सिर्फ ज्योतिष दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है बल्कि हमारे धर्म ग्रंथों में भी उनका विशिष्ट उल्लेख है। बृहस्पति को ज्ञान, धर्म, नीति, सुख, समृद्धि, आध्यात्म और मोक्ष का कारक माना जाता है।  कालपुरुष की कुंडली में बृहस्पति धर्म/भाग्य भाव यानि ९वे और खर्चा, विदेश, कानून एवं मोक्ष भाव अर्थात १२वे भाव के स्वामी माने गए हैं। ये धनु और मीन राशियों के स्वामी है तथा इन्हें पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वा भाद्रपद आदि नक्षत्रों का स्वामी भी बताया गया है। सौर मंडल में बृहस्पति सबसे बड़े ग्रह हैं। 


पौराणिक कथा के अनुसार इनका जन्म महर्षि अंगिरा और उनकी पत्नि सुरूपा की तपस्या के फल स्वरुप हुआ और अल्पकाल में ही ये वेद शास्त्रों के ज्ञाता बन गए जिसके पश्चात् इन्होंने काशी में शिवलिंग की स्थापना करके महादेव की घोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने इन्हें साक्षात् दर्शन दिए और कहा कि तुम अपने ज्ञान और नीति से देवताओं का मार्गदर्शन करो, महादेव ने ही इन्हें नवग्रह मंडल में स्थान प्रदान किया। 


कुंडली में ये कर्क राशि में उच्च और मकर राशि में नीच के माने जाते हैं, बृहस्पतिदेव सूर्य, चन्द्रमा और मंगल के साथ मित्रवत हैं इसलिए इनकी राशियों में भी अच्छे माने जाते हैं और शनि के साथ तटस्थ। कुंडली में बृहस्पति के शुभ होने से विद्या, ज्ञान, प्रतिष्ठा, यश और कीर्ति आदि की प्राप्ति होती है, विभिन्न ग्रहों के साथ गुरु राजयोगों का निर्माण करते हैं जैसे चंद्र के साथ बहुत प्रचलित गज केसरी योग बनाते हैं। गुरुदेव की दृष्टि भी अत्यंत शुभ मानी गयी है तथा ये पांचवी, सातवीं और नौवीं दृष्टि अन्य भावों पे डालते हैं, जहाँ भी इनकी दृष्टि होती है वहां शुभ परिणाम देखने को मिलते हैं। अशुभ या शत्रु राशि में होने पर इनके दुष्परिणाम भी देखने को मिलते हैं जैसे शिक्षा में व्यवधान, विवाह में देरी, धर्म और पूजा में मन न लगना।


नीचे दिए हुए कुछ सरल उपायों से गुरुदेव की कृपा प्राप्त होती है -


१) गुरूवार के दिन केले के पौधे की हल्दी, चावल, पुष्प से पूजा करके दीपक जलाएं। 

२) गुरूवार के दिन किसी भी नजदीक के मंदिर की सफाई करें। 

३) गुरूवार के दिन नहाने के पानी में एक चुटकी हल्दी डालकर स्नान करें। 

४) गुरूवार का व्रत करें, पीले फूल भगवान विष्णु को अर्पित करें और पीले मिष्ठान्न का भोग लगाएं, पीला ही भोजन संध्या के समय ग्रहण करें। 

५) अपने गुरु का तथा परिवार के बुजुर्गों का आशीर्वाद प्राप्त करें तथा उनका अपमान भूल कर भी न करें। 


नीचे दिए हुए कुछ मंत्र का जाप से भी बृहस्पतिदेव को प्रसन्न किया जा सकता है -


१) ॐ बृं बृहस्पतये नमः।

२) ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः।

३) देवानां च ऋषीणां च गुरुं काचन सन्निभम्, बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।। 

४) गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः। 

५) ॐ अंगिरसाय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो जीव: प्रचोदयात्। 

६) ॐ वृषभध्वजाय विद्महे करुनीहस्ताय धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात् |

७) ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्माय धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात्। 


ऊपर दिए गए सभी उपाय और मंत्र ऐसे तो दैनिक चर्या में उपयोग किये जा सकते हैं फिर भी किसी योग्य ज्योतिषी की सलाह लेकर ही अपनी कुंडली के शुभाशुभ अनुसार ही इनका प्रयोग करें। ये अवश्य ध्यान रखें कि गुरु ज्ञान, धर्म और नीति के स्वामी हैं और मनुष्य को विपरीत परिणाम तब ही प्राप्त होंगे जब वो इन सिद्धांतों का पालन नहीं करेगा। 


जय गुरुदेव, जय श्रीकृष्ण

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