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होलिका दहन की कथा और मुहूर्त

होलिका दहन की कथा और मुहूर्त

जानिए होलिका दहन की कथा, शुभ मुहूर्त और इसका महत्व 


सनातन हिंदू धर्म में, होली का त्योहार एकता, आनंद और परंपराओं का एक भव्य उत्सव है। इसकी धूम पूरे विश्व में है। दिवाली के बाद हिंदू धर्म में दूसरे सबसे महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में जाना जाने वाला होली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। पंचांग के अनुसार, होलिका दहन हर वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होलिका की अग्नि में सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश हो जाता है। अगले दिन रंगों की होली होती है। तो आइए, इस आर्टिकल में होलिका दहन और इसके शुभ मुहूर्त के बारे में जानते हैं। 


होलिका दहन तिथि


फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि आरंभ 13 मार्च , गुरुवार, प्रातः 10:35 से होगा। जबकि, फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि की समाप्ति 14 मार्च, शुक्रवार, दोपहर 12:23 बजे हो जाएगी।  


होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 


होलिका दहन का मुहूर्त 13 मार्च,  रात्रि 11 बजकर 26 मिनट से लेकर 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। ऐसे में होलिका दहन के लिए कुल 1 घंटे 4 मिनट का समय मिलेगा।


होलिका दहन की पौराणिक कथा


पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकशिपु नाम का एक राजा, कई असुरों की तरह, अमर होने की कामना करता था। इस इच्छा को पूरा करने के लिए, उन्होंने ब्रह्मा जी से वरदान पाने के लिए कठोर तपस्या की। प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने हिरण्यकश्यप को वरदान स्वरूप उसकी पांच इच्छाओं को पूरा किया: कि वह ब्रह्मा द्वारा बनाए गए किसी भी प्राणी के हाथों नहीं मरेगा, कि वह दिन या रात, किसी भी हथियार से, पृथ्वी पर या आकाश में, अंदर या बाहर नष्ट नहीं होगा, पुरुषों या जानवरों, देवों या असुरों द्वारा नहीं मरेगा, वह अप्रतिम हो, कि उसके पास कभी न खत्म होने वाली शक्ति हो, और वह सारी सृष्टि का एकमात्र शासक हो। वरदान प्राप्ति के बाद हिरण्यकशिपु ने अजेय महसूस किया। जिस किसी ने भी उसके वर्चस्व पर आपत्ति जताई, उसने उन सभी को दंडित किया और मार डाला। 


हिरण्यकशिपु का एक पुत्र था प्रह्लाद। प्रह्लाद ने अपने पिता को एक देवता के रूप में पूजने से इनकार कर दिया। उसने विष्णु में विश्वास करना और उनकी पूजा करना जारी रखा। प्रह्लाद की भगवान विष्णु के प्रति आस्था ने हिरण्यकशिपु को क्रोधित कर दिया।  इस कारण उसने प्रहलाद को मारने के लिए कई प्रयास किए, जिनमें से सभी असफल रहे। 


इन्हीं प्रयासों में, एक बार, राजा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने प्रहलाद को मारने के लिए अपने भाई का साथ दिया। विष्णु पुराण के अनुसार, होलिका को ब्रह्माजी से वरदान में ऐसा वस्‍त्र मिला था जो कभी आग से जल नहीं सकता था। बस होलिका उसी वस्‍त्र को ओढ़कर प्रह्लाद को जलाने के लिए आग में आकर बैठ गई। 


इसके बाद जैसे ही प्रह्लाद ने भगवान विष्णु के नाम का जाप किया। होलिका का अग्निरोधक वस्त्र प्रह्लाद के ऊपर आ गया और वह बच गया। जबकि, होलिका भस्म हो गई। धार्मिक मान्यता है, कि तब से ही बुराई पर अच्छाई की जीत के उत्साह स्वरूप सदियों से हर वर्ष होलिका दहन मनाया जाता है। होलिका दहन की कथा पाप पर धर्म की विजय का प्रतीक है।


जानिए होलिका दहन का महत्व 


होलिका दहन का महत्व पौराणिक कथाओं से कहीं अधिक माना जाता है। होलिका के जलाने की परंपरा आत्मा की शुद्धि और मन की पवित्रता का भी प्रतीक है। यह लोगों को होली के उत्सव के लिए तैयार करती है। इसके अतिरिक्त, होलिका दहन कृषि चक्र से भी संबंधित है। यह पर्व देवताओं को भरपूर फसल के उपज हेतु धन्यवाद देने का भी पर्व है।


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