उदासीन संप्रदाय के तीन प्रमुख अखाड़े हैं। इनमें से एक अखाड़ा है , उदासीन नया अखाड़ा। इस अखाड़े की स्थापना 1902 में हुई थी। इसका प्रमुख केंद्र कनखल, हरिद्वार में स्थित है। महाकुंभ की पेशवाई हो, शाही स्नान हो या फिर कोई शुभ कार्य हो , गुरु के प्रतीक के तौर पर संगत साहिब की सवारी सबसे आगे चलती है।
इस संप्रदाय के साधु-संत पंचतत्व की पूजा करते हैं और श्वेत वस्त्रधारी होते हैं। इसे 13 अखाड़ों में संस्कृत, संस्कृति, ज्ञान, भक्ति और नैतिकता के प्रचार का एक प्रमुख केंद्र माना जाता है। इस अखाड़े के साधु संतों का जीवन का उद्देश्य वेदों, उपनिषदों और भगवद्गीता के ज्ञान का प्रचार करना और समाज में सुधार लाना है। इस समय देश भर में अखाड़े के साथ 1.5 लाख से ज्यादा साधु-संत जुड़े हुए हैं। चलिए आपको अखाड़े के बारे में और विस्तार से बताते हैं।
दरअसल माना जाता है कि सन् 1902 में उदासीन संप्रदाय के साधुओं में मतभेद हो गया। यह मतभेद धार्मिक ग्रंथों को लेकर व्याख्या, संगठनात्मक मुद्दे और वैचारिक थे। इन मतभेदों को सुलझाने में महात्मा सूरदास ने अहम भूमिका निभाई और अलग संगठन बनाने का प्रस्ताव दिया। इसके बाद महात्मा सूरदास की प्रेरणा से एक अलग संगठन बनाया गया। जिसका नाम उदासीन नया अखाड़ा रखा गया है। इस अखाड़े का पंजीयन 6 जून 1913 को करवाया गया था। इस समय अखाड़े के देश भर में 700 से ज्यादा डेरे हैं। वहीं देश के बड़े तीर्थ स्थलों पर आश्रम हैं।
उदासीन नया अखाड़ा धार्मिक शिक्षा का एक बड़ा केंद्र है। यहां वेदों और उपनिषदों के अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों और आश्रमों का संचालन किया जाता है। ये आश्रम और स्कूल देश के विभिन्न स्थानों में फैले हुए हैं। यहां बच्चों को संस्कृत भाषा, वेद, उपनिषद, पुराण और भारतीय संस्कृति का ज्ञान दिया जाता है। हालांकि इन स्कूलों में आधुनिक सुविधाएं भी होती है। जैसा पुस्तकालय, प्रयोगशालाएं और खेल के मैदान। वही यहां कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किए जाते हैं।
उदासीन नया अखाड़े में पांच प्रेसिडेंट होते है, जो सर्वोपरि होते हैं। ये पांचों लोग ही अखाड़े में होने वाली सभी गतिविधियों का संचालन करते हैं। धार्मिक और सामाजिक गतिविधियां देखना भी इन्हीं लोगों की ही जिम्मेदारी होती है। इनकी नियुक्ति प्रक्रिया चुनावी होती है, जिसमें सभी साधु संत भाग लेते है। पांच लोगों को चुनने का कारण नेतृत्व संतुलन होता है। वहीं इससे सभी अपनी जिम्मेदारी के प्रति अधिक जवाबदेह होते हैं।
संक्रांति मतलब सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना और इसका वृश्चिक राशि में प्रवेश वृश्चिक संक्रांति कहलाता है। यह दिन सूर्य देव की विशेष पूजा और दान करने के लिए शुभ है और व्यक्ति के भाग्योदय में होता है।
भगवान सूर्य देव की उपासना का दिन वृश्चिक संक्रांति हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहार में से एक है। मान्यता है कि इस दिन सूर्य देव की पूजा करने से व्यक्ति को धन वैभव की प्राप्ति के साथ दुःखों से मुक्ति मिलती है। लेकिन क्या आपको पता है इस साल वृश्चिक संक्रांति कब हैं। वृश्चिक संक्रांति 2824 को लेकर थोड़ा असमंजस है।
हर संक्रांति में भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए इसे संक्रांति कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन सूर्य भगवान की पूजा करने से धन और वैभव की प्राप्ति होती है
वृश्चिक संक्रांति पौराणिक कथाओं के अनुसार एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योंहार है। यह हिंदू संस्कृति में सौर दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान सूर्य जी की पूजा के लिए विशेष माना होता है। वृश्चिक संक्रांति के समय सूर्य उपासना के साथ ही मंगल ग्रह शांति एवं पूजा करने से मंगल ग्रह की कृपा होती है।