महाकुंभ की शुरुआत में अब 20 दिन से कम समय बचा है। सारे अखाड़े भी शाही स्नान के लिए प्रयागराज पहुंच गए हैं। यह हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक प्रक्रिया है। जिसके लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु देश और दुनियाभर से त्रिवेणी संगम पर स्नान करना आने वाले हैं। इस संगम का धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। माना जाता है जो व्यक्ति संगम पर स्नान करता है, उसे पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्त होता है। आपको दिमाग में यह बात जरूर आई होगी, कि प्रयागराज में गंगा और यमुना नदी का संगम होता है। दोनों नदियां मिलती है, लेकिन सरस्वती नदी नहीं मिलती है। ऐसे में इसे त्रिवेणी संगम क्यों कहा जाता है। चलिए आर्टिकल के जरिए इस रहस्य से पर्दा उठाते हैं।
धर्म ग्रंथों के मुताबिक सरस्वती नदी प्राचीन काल में प्रमुख नदियों में एक थी।लेकिन समय और कई परिवर्तनों के कारण, इसका ज्यादातर भाग सूख गया। लेकिन माना जाता है कि इसकी जलधारा अभी भी गंगा और यमुना के संगम के नीचे गुप्त रूप से बहती रहती है। इसी कारण से प्रयागराज का त्रिवेणी संगम पवित्र है। वहीं कई कहानियों के मुताबिक त्रिवेणी संगम को तीनों देवताओं - ब्रह्मा, विष्णु और महेश का भी संगम माना जाता है। जिस कारण से यह जगह और पवित्र हो जाती है।
सरस्वती नदी का उल्लेख हिंदू धर्म के कई धार्मिक ग्रंथों, जैसे वेद, महाभारत और पुराणों में मिलता है। ऋग्वेद में सरस्वती को "नदीतमा" कहा गया है, जिसका मतलब श्रेष्ठ नदी होता है। वहीं महाभारत में भी बताया गया है कि सरस्वती नदी अपने अंतिम छोर पर लुप्त हो जाती है, और यही प्रयागराज के संगम में उसकी अदृश्य उपस्थिति का आधार बनाती है।
त्रिवेणी संगम केवल नदियों का मिलन नहीं है। इसका बड़ा आध्यात्मिक अर्थ भी है। गंगा नदी को हिंदू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है। इसकी पवित्रता आत्मिक शुद्धि का प्रतीक है। वहीं यमुना को भक्ति और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा सरस्वती नदी को ज्ञान और आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक कहा जाता है। ऐसे में इस संगम पर स्नान करना बेहद लाभकारी हो जाता है।
वहीं वैज्ञानिक कारण की बात करें तो कुछ रिसर्च में प्रमाण भी मिले हैं कि सरस्वती नदी प्राचीन काल में प्रवाहित होती थी और हरियाणा और राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों से गुजरती थी। लेकिन साल दर साल हुए परिवर्तनों के कारण वह विलुप्त हो गई और भूमिगत हो गई।
श्री राधे वुषभानुजा, भक्तनि प्राणाधार ।
वृन्दाविपिन विहारिणी, प्रानावौ बारम्बार ॥
जय जय सीताराम के मध्यवासिनी अम्ब,
देहु दर्श जगदम्ब अब करहु न मातु विलम्ब ॥
नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब ।
सन्तजनों के काज में, करती नहीं विलम्ब ॥
जय जय माता शीतला, तुमहिं धरै जो ध्यान ।
होय विमल शीतल हृदय, विकसै बुद्धी बल ज्ञान ॥