Logo

नागा निर्वस्त्र क्यों रहते हैं

नागा निर्वस्त्र क्यों रहते हैं

कड़ाके की ठंड में भी कपड़े नहीं पहनते नागा साधु, जानिए इसके पीछे की वजह 


सनातन धर्म में साधू-संतों का काफी महत्व है। साधु-संत भौतिक सुखों को त्यागकर सत्य व धर्म के मार्ग पर चलते हैं। इसके साथ ही उनकी वेशभूषा और खान-पान आम लोगों से बिल्कुल भिन्न होती है। उनको ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है। साधू-संत आमतौर पर पीला, केसरिया अथवा लाल रंगों के वस्त्र धारण करते हैं। साधू-संतों में नागा साधुओं की चर्चा जरूर होती है। सबसे खास बात यह है कि नागा साधू कपड़े नहीं धारण करते हैं। तो आइए, इस आलेख में नागा साधु और उनके निर्वस्त्र रहने के कारणों को विस्तार से जानते हैं। 



क्या होता है नागा का अर्थ? 


नागा साधु कड़ाके की ठंड में भी नग्न अवस्था में ही रहते हैं। इस दौरान वह शरीर पर धुनी या भस्म लगाकर घूमते हैं। दरअसल, नागा का अर्थ ही होता है 'नग्न’। इस कारण नागा संन्यासी पूरे  जीवन नग्न अवस्था में ही रहते हैं। वह अपने आपको भगवान का दूत मानते हैं। 



भस्म क्यों लगाते हैं नागा साधु?


महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज के संगम किनारे किया जा रहा है। इस दौरान अधिक संख्या में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि स्नान करने से जातक को सभी तरह के पापों से छुटकारा मिलता है। महाकुंभ में नागा साधु भी शामिल होते हैं और वे वस्त्र धारण नहीं करते हैं। वे अपने शरीर भस्म लगाकर रहते हैं।



जानिए निर्वस्त्र रहने के अन्य कारण  


नागा साधु मानते हैं कि व्यक्ति निर्वस्त्र ही जन्म लेता है और यह अवस्था प्राकृतिक है। इसलिए,  नागा साधु सदैव निर्वस्त्र रहते हैं।   


नागा साधु दिन में एक बार ही भोजन करते हैं। ये भोजन भी वे भिक्षा मांग कर ही करते हैं। अगर उन्हें किसी दिन 7 घरों में भिक्षा नहीं मिलती है तो उन्हें भूखा ही रहना पड़ता है। 



कैसे बनते हैं नागा साधु? 


किसी इंसान को नागा साधु बनने के लिए 12 साल का समय लगता है। नागा पंथ में शामिल होने के लिए इंसान को नागा साधु के बारे में महत्वपूर्ण बातों की जानकारी होना बेहद आवश्यक होता है। कुंभ में अंतिम प्रण लेने के बाद लंगोट का त्याग कर दिया जाता है। जिसके बाद वे जीवन में सदैव निर्वस्त्र ही रहते हैं।  



कब से शुरू हो रहा है महाकुंभ? 


महाकुंभ की शुरुआत पौष पूर्णिमा स्नान के साथ होती है। जो 13 जनवरी 2025 को है। वहीं, महाशिवरात्रि के दिन 26 फरवरी 2025 को अंतिम स्नान के साथ कुंभ पर्व का समापन हो जाएगा।  


........................................................................................................
साल में 2 बार क्यों मनाई जाती है वट सावित्री

भारत की परंपराएं अपनी गहराई और आध्यात्मिकता के लिए जानी जाती हैं। इन्हीं परंपराओं में एक प्रमुख स्थान रखता है ‘वट सावित्री व्रत’, जिसे सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख-शांति और अखंड सौभाग्य की कामना से करती हैं।

वट सावित्री व्रत की तिथि और मुहूर्त

हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, सुखद वैवाहिक जीवन और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए किया जाता है।

वट सावित्री व्रत की कथा

वट सावित्री का व्रत पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए किया जाने वाला एक पवित्र व्रत है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है।

महिलाएं क्यों करती हैं वट वृक्ष की पूजा

वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में विवाहित महिलाओं द्वारा रखा जाने वाला एक विशेष व्रत है, जो पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य के लिए किया जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है, तथा 2025 में यह व्रत सोमवार, 26 मई को मनाया जाएगा।

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang