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महाकुंभ में आए चाबी वाले बाबा की कहानी

महाकुंभ में आए चाबी वाले बाबा की कहानी

20 किलो की चाबी लेकर यात्रा करने वाले बाबा बनें महाकुंभ में आकर्षण का केंद्र


आस्था की नगरी प्रयागराज 12 साल बाद महाकुंभ 2025 के लिए पूरी तरह से तैयार है। देश के कोने-कोने से साधु-संतों का यहां पर लगातार आगमन हो रहा है। इस विशाल धार्मिक आयोजन में हरिश्चंद्र विश्वकर्मा, जिन्हें चाबी वाले बाबा के नाम से जाना जाता है, विशेष ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।

बाबा अपने साथ 20 किलो की एक विशाल लोहे की चाबी लेकर चलते हैं, जिसे वे 'राम नाम की चाबी' कहते हैं। उनका मानना है कि यह चाबी मोक्ष का मार्ग खोलने वाली है। उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के रहने वाले बाबा ने मात्र 16 वर्ष की उम्र में ही घर त्याग दिया था और तब से वे आध्यात्मिक जीवन जी रहे हैं।

बाबा ने बताया, "मेरे माता-पिता साधु थे। उन्होंने मुझे हरिश्चंद्र नाम दिया। मैंने इस नाम के अर्थ को समझने और इसे अपने जीवन में उतारने के लिए घर छोड़ दिया। हरिश्चंद्र ने हमें सत्य का मार्ग दिखाया है और मैं उनके अनुयायी हूं। भारत माता के सच्चे सिपाही के रूप में मैंने बचपन से ही संसार के मोह-माया से दूर रहने का निश्चय किया है।"

बाबा ने सरकार द्वारा किए गए भव्य आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि यह महाकुंभ लाखों श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करेगा। उन्होंने सभी से इस पवित्र आयोजन में शामिल होने का आह्वान किया। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं। 


चाबी वाले बाबा की कहानी पढ़ें



बाबा ने बताया कि समाज में फैली बुराइयों और नफरत ने उन्हें इतना विचलित किया कि उन्होंने घर-बार छोड़ने का कठिन निर्णय लिया। उन्होंने कहा, "मैंने सैकड़ों मील की यात्रा की है और अनेक मुसीबतों का सामना किया है, लेकिन सत्य की खोज में कभी नहीं थमा।" उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि 2025 का महाकुंभ एक ऐसा आयोजन है जो न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि देश की सांस्कृतिक विरासत को भी प्रदर्शित करता है। महाकुंभ आयोजन को भव्यता प्रदान करने के प्रयासों की सराहना करते हुए उन्होंने कहा, "यह देखकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि शासन और प्रशासन के लोग धर्म और संस्कृति के प्रति इतना समर्पित हैं। उन्होंने सनातन धर्म की गौरवशाली परंपरा को जीवंत रखने के लिए जो प्रयास किए हैं, वे काबिले तारीफ हैं। यह आयोजन निश्चित रूप से इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होगा।"


चाबी बाबा का संदेश कर्म से ही होगा बदलाव



चाबी वाले बाबा का कहना है कि हमारे जीवन में होने वाली हर अच्छी या बुरी घटना हमारे ही कर्मों का परिणाम होती है। अगर हम अच्छे कर्म करते हैं तो हमें अच्छे परिणाम मिलेंगे और हमारा भाग्य भी बदल सकता है।  वहीं बाबा ने कहा कि उन्होंने समाज में फैली बुराइयों और नफरत के खिलाफ लड़ने का प्रण लिया है। उन्होंने कई पदयात्राएं की हैं और जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया है, फिर भी वे सत्य के मार्ग पर अडिग रहे हैं। उन्होंने कहा कि 2025 महाकुंभ का आयोजन दिव्य, भव्य, स्वच्छ और डिजिटल होने के साथ-साथ बहुत ही शानदार तरीके से हो रहा है।

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स्कंद षष्ठी व्रत की पौराणिक कथा

स्कंद षष्ठी व्रत भगवान कार्तिकेय जिन्हें मुरुगन, सुब्रमण्यम और स्कंद के नाम से भी जाना जाता है उनकी पूजा को समर्पित है। यह व्रत मुख्यतः दक्षिण भारत में मनाया जाता है। भगवान कार्तिकेय को युद्ध और शक्ति के देवता के रूप में पूजते हैं।

स्कंद षष्ठी व्रत पूजा विधि

हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी व्रत रखा जाता है। स्कंद षष्ठी व्रत जीवन में शुभता और समृद्धि लाने का एक विशेष अवसर है। इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा विधिपूर्वक करने से व्यक्ति के सभी दुख दूर होते हैं।

गणेश जी की आरती व मंत्र

प्रत्येक महीने दो पक्ष होते हैं शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है, जबकि कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी कहलाती है। मार्गशीर्ष महीने में मनाई जाने वाली विनायक चतुर्थी भगवान गणेश की कृपा पाने का उत्तम समय है।

मेरे मन के अंध तमस में (Mere Man Ke Andh Tamas Me Jyotirmayi Utaro)

जय जय माँ, जय जय माँ ।
जय जय माँ, जय जय माँ ।

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