नागा साधु को महाकुंभ का आकर्षण माना जाता है, जिन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इनका शाही स्नान में महत्व बहुत अधिक है। क्योंकि इन्हें आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। नागा साधु अपनी साधना और योग शक्ति से आम लोगों को प्रेरित करते हैं और उन्हें धर्म की ओर आकर्षित करते हैं।
नागा साधु की खास बात है कि यह सिर्फ कुंभ के दौरान ही दिखाई देते हैं। इसके बाद वे तपस्या करके वापस जंगलों और पहाड़ों में लौट जाते हैं। यही वजह है कि नागा बाबाओं का जीवन रहस्यमयी होता है।
नागा साधु बनने के बाद की जिंदगी के बारे में बहुत लोग जानते हैं। चलिए आज आपको कुंभ से पहले रहस्यमयी जिंदगी के बारे में आपको बताते हैं।
नागा साधु मुख्य तौर पर निर्वस्त्र रहते हैं और शरीर पर भभूत और रेत लपेटते हैं। इनका जीवन हमेशा से ही रहस्यमयी रहा है। यह कहां से आते हैं और कहां गायब हो जाते हैं इस बारे में किसी को ज्यादा जानकारी नहीं होती। माना जाता है कि बहुत से संन्यासी वस्त्र धारण कर और कुछ निर्वस्त्र भी गुप्त स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं और फिर 6 वर्ष बाद यानी अगले अर्धकुंभ के मौके पर दिखाई देते हैं। आमतौर पर यह नागा संन्यासी अपनी पहचान छुपा कर रखते हैं।
गुरु दक्षिणा लेने के बाद नागा साधु संन्यास के लिए निकल जाते गहैं। वे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में जूनागढ़ की गुफाओं या पहाड़ियों में अपना समय बिताते हैं। हालांकि वह एक गुफा में नहीं रहते हैं,और हर 4-5 सालों में गुफा बदलते रहते । इस कारण इनकी सटीक स्थिति का पता लगा पाना मुश्किल होता है।
नागा साधु बनने के लिए सबसे पहले साधुओं को सांसारिक जीवन से मोह त्यागना पड़ता है। इस प्रक्रिया के बाद व्यक्ति को किसी अखाड़े में गुरु दीक्षा लेनी पड़ती है और अपना खुद का पिंडदान भी करना पड़ता है। जब गुरु दीक्षा पूरी हो जाती है, तो साधु कठिन तप के लिए निकल जाते हैं। ये तप लगभग 12 साल तक जंगलों और पहाड़ों पर तप करते हैं।
कुंभ मूल रूप से चार जगहों पर होता है। उज्जैन, प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक इन जगहों पर नागा साधु बनने पर अलग अलग नाम दिए जाते हैं। जैसे प्रयागराज में उपाधि पाने वाले साधु को नागा साधु कहा जाता है। हरिद्वार में नागा साधु बनने पर बर्फानी नागा कहा जाता है। नासिक में उपाधि पाने वाले साधुओं को खिचडियां नागा, वहीं उज्जैन में नागा साधु की उपाधि पाने वाले साधुओं को खूनी नागा कहा जाता है।
हिंदू धर्म की समृद्ध परंपरा में "सोलह संस्कार" का महत्वपूर्ण स्थान है, जो जीवन के हर महत्वपूर्ण पड़ाव को दिशा देते हैं। इन संस्कारों में से एक है अन्नप्राशन, जब बच्चा पहली बार ठोस आहार का स्वाद लेता है।
क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक शक्तिशाली उपाय है? जी हां, हम बात कर रहे हैं प्रदोष व्रत की। यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है और इसका महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है।
सनातन धर्म में साधू-संतों का काफी महत्व है। साधु-संत भौतिक सुखों को त्यागकर सत्य व धर्म के मार्ग पर चलते हैं। इसके साथ ही उनकी वेशभूषा और खान-पान आम लोगों से बिल्कुल भिन्न होती है। उनको ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है। साधू-संत आमतौर पर पीला, केसरिया अथवा लाल रंगों के वस्त्र धारण करते हैं।
2024 के खत्म होने में अब बस कुछ ही दिन शेष बचे हैं। नववर्ष 2025 में ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार कई प्रमुख ग्रहों की चाल में होने वाला है। इनमें गुरु, शनि और राहु-केतु हैं। ये अपनी-अपनी राशि बदलने वाले हैं।