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उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण स्थलों में प्रथम श्रेणी का ऐतिहासिक स्थल है। महाकाल मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक भगवान शिव के महाकाल रूप का मंदिर है। पुराणों के अनुसार जब तक महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन नहीं होते, तब तक इंसान के आध्यात्मिक जीवन को पूर्ण नहीं माना जाता है। हिंदू शास्त्रों में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग स्वरूपों का काफी महत्व बताया गया गया है। मान्यता है कि भगवान शिव ने 12 जगहों पर साक्षात दर्शन दिए थे, तब वहां ज्योतिर्लिंग उत्पन्न हुए।
महाकाल मंदिर की विशेषता - महाकाल दक्षिण की ओर मुख वाला एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जबकि अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों का मुख पूर्व की तरफ है। गरुण पुराण के अनुसार मृत्यु की दिशा दक्षिण मानी जाती है इसलिए महाकाल को अकाल मृत्यु से मोक्ष दिलाने वाले देवता के रूप में भी पूजा जाता है।
इन ग्रंथों में मिलता है मंदिर का विवरण
महाकाल मंदिर का उल्लेख कई प्राचीन भारतीयग्रंथों में मिलता है। चौथी शताब्दी में कालीदास ने मेघदूतम के प्रारंभिक भाग में भी महाकाल मंदिर का विवरण देते हुए कहा है कि “यह एक पत्थर की नींव के साथ लकड़ी के खंभों पर छत के साथ वर्णित है।” गुप्त काल से पहले मंदिरों का कोई शिखर नहीं होता था। कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग ही संपूर्ण पृथ्वी का केंद्र बिंदु है और संपूर्ण पृथ्वी के राजा भगवान महाकाल यहीं से पृथ्वी का भरण-पोषण करते हैं।
मंदिर के नाम के पीछे कई रहस्य
इस मंदिर के नाम के पीछे कई रहस्य है। कहते हैं कि महाकाल का शिवलिंग तब प्रकट हुआ था, जब राक्षस को मारना था। उस समय भगवान शिव राक्षस के लिए काल बनकर आए थे। फिर उज्जैन के लोगों ने महाकाल से वहीं रहने को कहा और वह वहीं स्थापित हो गए। ऐसे में शिवलिंग काल के अंत तक यही रहेंगे इसलिए भी महाकालेश्वर नाम दे दिया गया। इसके अलावा काल का मतलब मृत्यु और समय दोनों होता है। माना जाता है कि प्राचीन काल में पूरी दुनिया का मानक समय यहीं सें निर्धारित होता था इसलिए इसे महाकालेश्वर नाम दे दिया था।
आज जहां महाकाल मंदिर है, वहां प्राचीन समय में वन हुआ करता था, जिसके अधिपति महाकाल थे। इसलिए इसे महाकाल वन भी कहा जाता था। स्कंद पुराण के अवंती खंड, शिव महापुराण, मत्स्य पुराण आदि में महाकाल वन का वर्णन मिलता है। शिव महापुराण की उत्तरादार्ध के 22वें अध्याय के अनुसार दूषण नामक एक दैत्य से भक्तों की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ज्योति के रूप में यहां प्रकट हुए थे। दूषण का नाश करने के बाद वे महाकाल के नाम से पूज्य हुए। तत्कालीन राजा राजा चंद्रसेन के युग में यहां एक मंदिर भी बनाया गया, जो महाकाल का पहला मंदिर था। महाकाल का वास होने से पुरातन साहित्य में उज्जैन को महाकालपुरम भी कहा गया है।
भस्म आरती से जुड़ा रहस्य
प्राचीन काल में राजा चंद्रसेन शिव के बहुत बड़े उपासक माने जाते थे। एक दिन राजा के मुख से मंत्रों का जाप सुन एक किसान का बेटा भी उनके साथ पूजा करने गया। लेकिन सिपाहियों ने उसे दूर भेज दिया। इसके बाद वह जंगल के पास जाकर पूजा करने लगा और वहां उसे अहसास हुआ कि दुश्मन राजा उज्जैन पर आक्रमण करने जा रहे हैं। ऐसे में उसने प्रार्थना के दौरान ये बात पुजारी को बता दी। धीरे-धीरे बात फैल गई और उस समय विरोधी राक्षस दूषण का साथ लेकर उज्जैन पर आक्रमण कर रहे थे। दूषण को भगवान ब्रह्मा का वर्दान था कि वो दिखाई नहीं देगा। उस समय पूरी प्रजा भगवान शिव की पूजा में लीन थी। तभी अपने भक्तों की पुकार सुनकर महाकाल प्रकट हुए और दूषण का वध कर दिया। फिर उसकी राख से श्रंगार किया और विराजमान हो गए। तभी से भस्म आरती की परंपरा बन गई जो आ तक चली आ रही है। पूर्व में शमशान से लाई गई राख बाबा महाकाल को चढ़ाई जाती थी। लेकिन वर्तमान में गाय के गोबर से बने उपलों (कंडों) की भस्म से महाकाल की भस्मारती की जाती है। यह आरती सूर्योदय से पूर्व सुबह 4 बजे की जाती है। जिसमें भगवान को स्नान के बाद भस्म चढ़ाई जाती है।
जूना महाकाल
महाकाल मंदिर के प्रांगण में एक जूना महाकाल मंदिर है। जिसके पीछे की कथा है कि कुछ राजाओं और आक्रमणकारियों के समय इस मंदिर में मौजूद असली शिवलिंग को कई बार नष्ट करने की कोशिश की गई थी, जिससे बचने के लिए पुजारियों ने असली शिवलिंग को वहां से हटा दिया और एक दूसरा शिवलिंग रखकर पूजा करने लगे। इसके बाद जब असली शिवलिंग को वापस स्थापित किया गया तो हटाई गई शिवलिंगो को मंदिर के प्रांगण में स्थापित कर दिया गया। जिसे जूना महाकाल कहते हैं।
कैसे पहुंचे महाकालेश्वर
भारत की राजधानी दिल्ली से महाकालेश्वर मंदिर करीब 800 किमी की दूरी पर स्थित है. दिल्ली से उज्जैन पहुंचने के आप ट्रेन, हवाई या सड़क मार्ग का रास्ता चुन सकते हैं।
ट्रेन - उज्जैन जाने के लिए आपको देश के बड़े स्टेशन से डायरेक्ट उज्जैन जंक्शन के लिए ट्रेन मिल जाएगी, इसके अलावा आप भोपाल आकर भी ट्रेन से उज्जैन पहुंच सकते हैं। इसके बाद आप उज्जैन सिटी जंक्शन या विक्रम नगर रेलवे स्टेशन पहुंचकर यहां से कैब या ऑटो के जरिए महाकलेश्वर मंदिर पहुंच सकते हैं।
हवाई जहाज- महाकालेश्वर मंदिर से महारानी अहिल्या बाई होल्कर एयरपोर्ट उज्जैन सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है। यहां से आप टैक्सी बस या ट्रेन से मंदिर पहुंच सकते हैं।
सड़क- आप बस या फिर पर्सनल ट्रांसपोर्ट की मदद से भी उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर पहुंच सकते हैं।
उज्जैन के होटल्स -
उज्जैन इंडिया के टू-टाइर शहरों की लिस्ट में आता है, यहां रुकने के लिए कई अच्छी होट्लस हैं। आप यहां होटल शिखर दर्शन, होटल महाकाल विश्राम, होटल शिवम पैलेस, मित्तल एवेन्यू, होटल इम्पीरियल, अंजूश्री होटल, रूद्राक्ष पैलेस एंड रिसॉर्ट जैसे कई 5 स्टार, 3 स्टार और बजट फ्रैंडली होटल्स हैं।
तो इस तरह आप उज्जैन के विश्व प्रसिद्ध महाकाल मंदिर में दर्शन के लिए जा सकते हैं।
उज्जैन महाकाल कॉरिडोर - महाकाल मंदिर के अलावा उज्जैन में कई दर्शनीय स्थल और मंदिर हैं, मध्यप्रदेश सरकार ने यहां 2023 में महाकाल लोक का भी निर्माण कराया है जो देखने में एक दम अद्भुत और अलौकिक है। यहां भगवान शिव के सभी रूपों के साथ-साथ सनातन संस्कृति के ज्ञान का अद्भुत भंडार है। इसलिए आप जब भी उज्जैन के महाकाल मंदिर आएं, भगवान शिव के इस अनुपम और अद्वितीय महाकाल लोक के दर्शन के लिए भी अवश्य जाएं।
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