इष्टि पौराणिक कथा और महत्व

वैदिक काल का यज्ञ है इष्टि, जानिए क्या है पौराणिक कथा और महत्व

 

इष्टि, वैदिक काल का एक विशेष प्रकार का यज्ञ है। जो इच्छाओं की पूर्ति और जीवन में शांति लाने के उद्देश्य से किया जाता है। संस्कृत में 'इष्टि' का अर्थ 'यज्ञ' होता है। इसे हवन की तरह ही आयोजित किया जाता है। यह अनुष्ठान अन्वाधन के अगले दिन मनाया जाता है। इसमें देवताओं का आह्वान कर इच्छित फल प्राप्त करने की कामना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इष्टि यज्ञ करने से परिवार, समाज और व्यक्ति के जीवन में खुशियां आती हैं। इस अनुष्ठान से जुड़ी राजा मांधाता की कथा इसे और भी पवित्र और रोचक बनाती है।


इष्टि का अर्थ और महत्व


संस्कृत में 'इष्टि' शब्द का अर्थ 'यज्ञ' होता है। यह 'यज्' धातु से बना है।

इष्टि एक वैदिक अनुष्ठान है। इसमें देवताओं का आह्वान कर इच्छित फल प्राप्ति की कामना की जाती है। यह अनुष्ठान वैष्णव संप्रदाय के लिए विशेष महत्व रखता है। हवन के दौरान पवित्र अग्नि में आहुति दी जाती है और ईंधन जोड़ा जाता है। जिससे अग्नि प्रज्वलित रहे। इसे करने से व्यक्ति की इच्छाएं पूरी होती हैं और परिवार तथा समाज में सुख-शांति बनी रहती है।


राजा मांधाता की कथा


राजा मांधाता रघुवंश के प्रसिद्ध राजा थे। उनका जन्म एक अद्भुत घटना के तहत हुआ था। जो उनके पिता राजा युवनाश्व और ऋषि च्यवन द्वारा किए गए इष्टि यज्ञ से जुड़ी है।

दरअसल, राजा युवनाश्व को कोई संतान नहीं थी। पुत्र प्राप्ति की कामना के लिए उन्होंने राजपाठ छोड़कर तपस्या का निर्णय लिया। तप के दौरान उनकी भेंट ऋषि च्यवन से हुई। जिन्होंने संतान प्राप्ति के लिए एक विशेष इष्टि यज्ञ का आयोजन किया।

यज्ञ के बाद ऋषियों ने अभिमंत्रित जल एक कलश में रखा, जिसे राजा की पत्नी को पीना था। यह जल गर्भ धारण के लिए अभिमंत्रित था।

एक रात राजा युवनाश्व को भयंकर प्यास लगी। उन्होंने अनजाने में उस अभिमंत्रित जल को ही पी लिया। इसके परिणामस्वरूप, ऋषियों ने भविष्यवाणी की कि अब राजा खुद संतान को जन्म देंगे। सही समय पर देवताओं के चिकित्सक अश्विनीकुमारों ने राजा युवनाश्व की कोख से बच्चे को जन्म दिया।

बच्चे को दूध पिलाने के लिए इंद्र ने अपनी उंगली शिशु के मुंह में डाली और कहा, "मम धाता" अर्थात “मैं इसका माता हूं।” इस कारण बच्चे का नाम 'मांधाता' पड़ा। जन्म के तुरंत बाद शिशु 13 बित्ता लंबा हो गया और उसने अपनी अद्भुत शक्तियों से सबको चमत्कृत कर दिया।

राजा मांधाता ने सूर्यास्त से लेकर सूर्य उदय तक के सभी क्षेत्रों पर धर्मपूर्वक शासन किया। राजा ने 100 अश्वमेध यज्ञ और 100 राजसूय यज्ञ किए। उन्होंने स्वर्ण मछली बनाकर ब्राह्मणों को दान दिया। अंततः राजा ने भगवान विष्णु के दर्शन के लिए वन में तपस्या की और अपनी अंतिम सांस वहीं ली।


वैदिक युग में इष्टि का विशेष महत्व


इष्टि को वैदिक युग में विशेष महत्व दिया गया है। यह पाँच प्रकार के यज्ञों में से एक है। 

  1. अग्निहोत्र
  2. दर्शपूर्णमास
  3. चातुर्मास्य
  4. पशु यज्ञ
  5. सोम यज्ञ

स्मृति और कल्पसूत्रों में कुल 21 यज्ञों का उल्लेख है। जिनमें पाकयज्ञ, हविर्यज्ञ और सोमयज्ञ शामिल हैं। अमावस्या और पूर्णिमा के बाद होने वाले यज्ञ को सामान्य रूप से 'इष्टि' कहा जाता है।


इष्टि यज्ञ करने के लाभ


इष्टि एक वैदिक यज्ञ है। साथ ही इच्छाओं की पूर्ति और आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग भी है। राजा मांधाता की कथा इसे और भी पवित्र और प्रेरणादायक बनाती है। इष्टि यज्ञ व्यक्तिगत इच्छाएं पूरी करता है। साथ ही समाज और परिवार के लिए भी शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।

आज भी इष्टि यज्ञ को वैदिक परंपरा के अनुसार मनाया जाता है। इष्टि के दिन उपवास रखने से व्यक्ति के जीवन में शांति और समृद्धि आती है। यह अनुष्ठान परिवार और समाज में खुशहाली लाने में सहायक होता है।


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