Logo

रविवार व्रत कथा और महत्व

रविवार व्रत कथा और महत्व

ग्रहों के राजा सूर्यदेव को समर्पित होता है रविवार, जानिए रविवार व्रत कथा और महत्व


रविवार का दिन भगवान सूर्य को समर्पित होता है। सूर्यदेव को बेहद कल्याणकारी ग्रह माना गया है। ऐसे में रविवार के दिन किया जाने वाला व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, रविवार का व्रत करने से सूर्यदेव की कृपा बरसती है। इससे व्यक्ति के रोग, कष्ट, बीमारी और दुविधा दूर होती हैं। साथ ही जीवन में खुशहाली आती है। रविवार व्रत की शुरुआत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के रविवार को की जा सकती है। आइए, इस लेख में रविवार व्रत कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं।

रविवार व्रत कथा:


प्राचीन समय की बात है। किसी नगर में एक बुढ़िया रहती थी। वह प्रत्येक रविवार को नियमित रूप से सूर्यदेव का व्रत रखती थी। हर रविवार, सूर्योदय से पहले वह स्नान करके अपने आंगन की सफाई करती और सूर्यदेव की पूजा करती। इसके बाद वह रविवार व्रत कथा सुनती और सूर्य भगवान को भोग अर्पित करती। पूजा के बाद बुढ़िया दिन में केवल एक बार भोजन ग्रहण करती थी।

सूर्यदेव की कृपा से बुढ़िया का घर धन-धान्य से भरने लगा। उसकी समृद्धि देखकर पड़ोसन जलन से भर उठी। चूंकि बुढ़िया अपने आंगन की लिपाई के लिए गोबर मांगकर लाती थी, पड़ोसन ने अपनी गाय को घर के अंदर बांध दिया ताकि बुढ़िया को गोबर न मिले।

रविवार के दिन गोबर न मिलने के कारण बुढ़िया आंगन नहीं लीप पाई। इससे वह बेहद दुखी हो गई। उसने न तो सूर्यदेव को भोग लगाया और न ही भोजन किया। भूखी-प्यासी वह सो गई। अगले दिन भोर में जब उसकी आंख खुली, तो उसने अपने आंगन में एक सुंदर गाय और बछड़े को खड़ा देखा। बुढ़िया खुशी से झूम उठी। उसने गाय को चारा खिलाया।
पड़ोसन ने यह सब देखा और जब उसने गाय के सोने का गोबर देखा, तो लालच से भर गई। उसने गाय का गोबर चुरा लिया और अपनी गाय का गोबर वहां रख दिया। इस प्रकार वह धीरे-धीरे धनवान बन गई।

जब सूर्यदेव को पड़ोसन की चालाकी का पता चला, तो उन्होंने तेज आंधी चलाई। बुढ़िया ने गाय को घर के भीतर बांध दिया। अगले दिन उसे गाय के सोने का गोबर मिला। बुढ़िया अब हर रात गाय को घर के भीतर बांधने लगी और जल्द ही धनवान हो गई।

पड़ोसन ने अपनी जलन में अपने पति को नगर के राजा के पास भेज दिया। राजा ने गाय को देखकर बुढ़िया से वह छीन ली। बुढ़िया दुखी होकर सूर्यदेव से प्रार्थना करने लगी। सूर्यदेव को उस पर दया आ गई।

रात में सूर्यदेव ने राजा को स्वप्न में चेतावनी दी:

"हे राजन! बुढ़िया की गाय और बछड़ा तुरंत लौटा दो, अन्यथा तुम्हारा महल और राज्य नष्ट हो जाएगा।"
डर के मारे राजा ने सुबह बुढ़िया को गाय और बछड़ा लौटा दिया। उसने बुढ़िया को माफी मांगते हुए धन और जेवर भी दिए। साथ ही पड़ोसन और उसके पति को दंडित किया।

इसके बाद राजा ने पूरे राज्य में रविवार व्रत के महत्व की घोषणा की। उसने कहा कि जो भी व्यक्ति रविवार का व्रत विधिपूर्वक करेगा, उसके घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होगी। इस व्रत के प्रभाव से राज्य में सुख-समृद्धि और शांति छा गई।

........................................................................................................
श्री बद्रीनाथजी जी की आरती (Shri Badrinath Ji Ki Aarti)

पवन मंद सुगंध शीतल, हेम मंदिर शोभितम्,
निकट गंगा बहत निर्मल, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम्।

श्री लक्ष्मीनारायण जी की आरती

जय लक्ष्मी-विष्णो, स्वामी जय लक्ष्मीनारायण,
जय माधव, जय श्रीपति, जय, जय, जय विष्णो॥

श्री शीतला माता जी की आरती(Shri Shitala Mata Ji Ki Aarti )

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।
आदि ज्योति महारानी, सब फल की दाता॥

जगदीश जी की आरती (Shri Jagdish Ji Ki Aarti)

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥

यह भी जाने
HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang