रंग पंचमी हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है और यह पर्व चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन देवी-देवता धरती पर आकर भक्तों के साथ होली खेलते हैं और उनकी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। इसलिए, इस दिन अबीर-गुलाल उड़ाकर देवताओं को आमंत्रित किया जाता है। खासकर इंदौर में इस पर्व की भव्यता देखने लायक होती है।
रंग पंचमी का सीधा संबंध होलिका दहन से है। माना जाता है कि होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और इसके पांच दिन बाद रंग पंचमी पर रंगों का उत्सव मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन देवी-देवता धरती पर वायुरूप में आते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। धर्मग्रंथों के अनुसार, रंग पंचमी का पर्व तामसिक और राजसिक गुणों पर सत्वगुण की विजय को दर्शाता है। यह दिन आत्मिक शुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। रंग पंचमी को श्री पंचमी या देव पंचमी भी कहा जाता है।
रंग पंचमी केवल एक रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि इसका आध्यात्मिक महत्व भी है। माना जाता है कि:
रंग पंचमी का यह पर्व केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और भक्ति का प्रतीक है। इसे पूरे हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
जन्माष्टमी का त्योहार दो दिन मनाने के पीछे देश के दो संप्रदाय हैं जिनमें पहला नाम स्मार्त संप्रदाय जबकि दूसरा नाम वैष्णव संप्रदाय का है।
भगवान अपने भक्तों को कब, कहा, क्या और कितना दे दें यह कोई नहीं जानता। लेकिन भगवान को अपने सभी भक्तों का सदैव ध्यान रहता है। वे कभी भी उन्हें नहीं भूलते। भगवान उनके भले के लिए और कल्याण के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
मुरलीधर, मुरली बजैया, बंसीधर, बंसी बजैया, बंसीवाला भगवान श्रीकृष्ण को इन नामों से भी जाना जाता है। इन नामों के होने की वजह है कि भगवान को बंसी यानी मुरली बहुत प्रिय है। श्रीकृष्ण मुरली बजाते भी उतना ही शानदार हैं।
भक्त वत्सल की जन्माष्टमी स्पेशल सीरीज के एक लेख में हमने आपको बताया था कि कैसे भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना में कूदकर कालिया नाग से युद्ध किया था। क्योंकि उसके विष से यमुना जहरीली हो रही थी।