करवा चौथ व्रत कथा (Karwa Chauth Vrat Katha)

करवा चौथ की सबसे प्रसिद्ध कहानी के अनुसार देवी करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास रहा करती थीं। एक दिन करवा के पति नदी में स्नान करने गए तो एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया और उन्हें जल में खिंचने लगा। मृत्यु करीब देखकर करवा के पति करवा को पुकारने लगे। करवा दौड़कर नदी के पास पहुंचीं और पति को मृत्यु के मुंह में ले जाते मगर को देखा। हालांकि, इसके बाद करवा ने तुरंत एक कच्चा धागा लेकर मगरमच्छ को एक पेड़ से बांध दिया। करवा के सतीत्व के कारण मगरमच्छ कच्चे धागे में ऐसा बंधा की टस से मस नहीं हो पाया। अब करवा के पति के साथ मगरमच्छ के भी प्राण संकट में फंसे थे। 


तब देवी करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति को जीवनदान देने और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए कहा। यमराज ने कहा मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि अभी मगरमच्छ की आयु शेष है और तुम्हारे पति की आयु पूरी हो चुकी है। क्रोधित होकर करवा ने यमराज से कहा कि अगर आपने ऐसा नहीं किया तो मैं आपको श्राप दे दूंगी। सती के श्राप से भयभीत होकर यमराज ने तुरंत मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को जीवनदान दे दिया। इसलिए, करवाचौथ के व्रत में सुहागन स्त्रियां करवा माता से प्रार्थना करती हैं कि “हे करवा माता जैसे आपने अपने पति को मृत्यु के मुख से वापस निकाल लाया वैसे ही मेरे सुहाग की भी रक्षा करना।” 


करवा माता की तरह ही सावित्री ने भी कच्चे धागे से अपने पति को वट वृक्ष के नीचे लपेट कर रखा था। कच्चे धागे में लिपटा प्रेम और विश्वास ऐसा था कि यमराज सावित्री के पति के प्राण अपने साथ लेकर नहीं जा सके। सावित्री के पति के प्राण को यमराज को लौटाना पड़ा और सावित्री को वरदान देना पड़ा कि उनका सुहाग हमेशा बना रहेगा और लंबे समय तक दोनों साथ रहेंगे। 


।। इति करवाचौथ व्रत कथा समाप्त।।

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श्री परशुराम चालीसा (Shri Parshuram Chalisa)

श्री गुरु चरण सरोज छवि, निज मन मन्दिर धारि।
सुमरि गजानन शारदा, गहि आशिष त्रिपुरारि।।

आरती भगवान श्री रघुवरजी की (Aarti Bhagwan Shri Raghuvar Ji Ki)

आरती कीजै श्री रघुवर जी की, सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की।
दशरथ तनय कौशल्या नन्दन, सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन।

महाशिवरात्रि व्रत कथा प्रारम्भ (Mahashivratri Vrat Katha Prarambh)

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श्रीदेव्यथर्वशीर्षम् (Sri Devi Atharvashirsha)

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