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इतनी कथा सुनकर महाराज युधिष्ठिर ने भगवान् से कहा-प्रभो ! अब आप कृपा करके कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के माहात्म्य का वर्णन करिये। पाण्डुनन्दन की ऐसी वाणी सुन भगवान् कृष्ण ने कहा-हे राजन् ! कार्तिक मास की कृष्ण एकादशी का नाम रमा है। यह एकादशी अतुल एवं अक्षय फल को देने वाली है। इसका एक सुन्दर और प्रत्यक्ष उपाख्यान मैं तुम्हें सुनाता हूँ, सुनो।
प्राचीन काल में मुचुकुन्द नाम का महा धर्मवान् और प्रतापी राजा था। यम कुबेर और इन्द्र वरुणादि उसके मित्र थे वह अपनी प्रजा का पालन न्याय और धर्म के साथ करता था उसके राज्य में पशु पक्षी कुत्ता, बिल्ली और घोड़े हाथी तक व्रत करते थे। उसकी परम रूपवती कन्या थी जिसका नाम चन्द्रभागा था। उसका ब्याह महाराज चन्द्रसेन के लड़के शोभन के साथ हुआ था दैव संयोग से एक बार वह एकादशी के समय में ही ससुराल आया। वह अत्यन्त ही सुकुमार और भूख को एकदम नहीं बर्दास्त कर सकता था।
अस्तु चन्द्रभागा सोचने लगी कि शोभन अत्यन्त ही दुर्बल एवं उपवास के अयोग्य है इसका क्या प्रबन्ध करना चाहिये? यही बात शोभन ने अपनी पत्नी से कहा कि प्यारी में तो भूखा रह ही नहीं सकता मेरे लिए क्या होगा ? चन्द्रभागा ने कहा हे प्राणनाथ बड़ी चिन्ता मुझे भी व्याप्त हो रही है। क्योंकि यहाँ पर तो कुत्ते, बिल्ली, हाथी और घोड़े भी खाने को नहीं पाते तब मनुष्य के लिये क्या कहा जाय। अस्तु यदि भूखे रहने में असमर्थ हैं तो यहाँ से चले जाइये नहीं तो उपवास निश्चय ही करना होगा। चन्द्रभागा के ऐसे वचन सुन शोभन ने कहा तब फिर किया ही क्या जायगा ? मैं भी व्रत करूँगा। इसी निश्चय के अनुसार शोभन को मजबूरन उपवास करना पड़ा। सूर्यास्त होते-होते शोभन की दशा बिगड़ने लगी रात भर अत्यन्त कष्टपूर्वक तड़फड़ाता हुआ प्रातः सूर्योदय होने के पहले ही उसकी मृत्यु हो गई। अत्यन्त शोक के साथ राजा ने उसका दाह संस्कार किया। चन्द्रभागा बेचारी पिता के घर रहकर वैधव्य दुःख भोगने लगी। इधर रमा व्रत के प्रभाव से शोभन अपना शरीर त्याग मन्दराचल पर्वत के शिखर पर एक अत्यन्त ही सुन्दर और विशाल नगर का अधिकारी हुआ। उसके रंग रूप में कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ।
एक बार एक ब्राह्मण महाराज मुचुकुन्द के राज्य का रहने वाला घूमता फिरता वहाँ जा पहुँचा और शोभन पर नजर पड़ते ही उसे पहिचान गया। शोभन भी उसे पहिचान गया और अपने श्वसुरपुर का निवासी जान समुचित आदर सत्कार किया और अपने श्वसुर और पत्नी का समाचार पूछा ब्राह्मण ने वहाँ का कुशल क्षेम बतला शोभन से पूछा आपको इस अवस्था में देख मैं बड़े चक्कर में हूँ क्योंकि आपकी दाह-क्रिया मेरे सामने ही की गई थी। शोभन ने कहा-महाराज ! यह सब रमा एकादशी का प्रभाव है परन्तु यह अभी नाशवान् है क्योंकि मैंने अश्रद्धा पूर्वक इस व्रत को किया था अब तुम यह वृत्तान्त कहना क्योंकि इसको अचल और स्थायी वही बना सकती है। शोभन के ऐसे वचन सुन वह ब्राह्मण अपने राजा के यहाँ जा राजपुत्री से यह सार। वृत्तान्त कहा। राजकन्या ने सारी कथा सुन ब्राह्मण से कहा। क्या तुमने जो कुछ कहा वह सत्य है? ब्राह्मण ने कहा ध्रुव सत्य है। तब कन्या ने अपने माता-पिता से यह हाल कह कर उसने पति के दर्शन करने की आज्ञा चाही तब उन्होंने प्रसन्नता पूर्वक आज्ञा दे दी।
वह सोमशर्मा ब्राह्मण के साथ वहाँ गई। मार्ग में उसे महर्षि वामदेव का आश्रम मिला उनके पूछने पर कन्या ने सारा वृत्तान्त ज्यों का त्यों उनसे कह सुनाया तब महर्षि ने प्रसन्नता पूर्वक वेद मन्त्रों द्वारा उसका अभिषेक किया और वह उन मन्त्रों के प्रभाव से अत्यन्त ही दिव्य स्वरूप वाली हो गई और अपने पति के पास पहुँची। शोभन ने अपनी स्त्री का समुचित आदर किया और उसको अपने सिंहासन पर वामभाग में स्थापित किया। तब चन्द्रभागा अत्यन्त प्रसन्न हो कहने लगी-प्राणनाथ! मैं अपने पति के घर रहकर अर्जित किये हुए पुण्यों के प्रभाव से आपके इस राज्य को अटल और अचल बनाती हूँ, क्योंकि अपने बाल्यकाल से ही मैं एकादशी व्रतों को श्रद्धा पूर्वक कर रही हूँ। हे राजन् ! इस प्रकार इस रमा एकादशी व्रत के पुण्यफल द्वारा चन्द्रभागा विधवा से सधवा हो राज्य सुख भोग करने लगी। इस रमा एकादशी के माहात्म्य को कहने और सुनने वाला अवश्य ही अपने सब पाप नष्ट कर यहाँ के सब सुखों को भोग अन्त में विष्णु लोक को प्राप्त करता है।
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