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कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रबोधिनी एकादशी (Kaartik Maas Ke Shukl Paksh Kee Prabodhinee Ekaadashee)

ब्रह्माजी ने कहा कि हे मनिश्रेष्ठ ! गंगाजी तभई तक पाप नाशिनी हैं जब तक प्रबोधिनी एकादशी नहीं आती। तीर्थ और देव स्थान भी तभी तक पुण्यस्थल कहे जाते हैं जब तक प्रबोधिनी का व्रत नहीं किया जाता। प्रबोधिनी एकादशी के व्रत से हजार अश्वमेध एवं हजार राजसूय यज्ञ करने का पुण्य फल होता है।

ब्रह्माजी के ऐसे वचन सुन नारदजी ने कहा- देव ! एकादशी में एक बार भोजन करने या रात में भोजन करने या न करने का क्या-क्या फल होता है? ब्रह्मा जी ने कहा-शाम को भोजन करने वाले का एक जन्म के, रात को भोजन करने वाले को दो जन्म के और पूर्ण व्रत करने वाले के सात जन्म के पाप नष्ट होते हैं।महान् दुर्लभ एवं अप्राप्य वस्तु भी इस प्रबोधिनी एकादशी के व्रत के पुण्य प्रभाव से निःसन्देह प्राप्त होती है। ब्रह्माजी ने कहा-नारद ! विधि एवं श्रद्धातथा भक्ति के साथ किया हुआ थोड़ा एवं अल्प पुण्य भी महान् होता है। प्रबोधिनी एकादशी व्रत के संकल्प मात्र से ही सौ जन्मों के पाप नष्ट हो जात हैं। प्रबोधिनी में रात्रि जागरण करने से आगे वाले दस हजार जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। और दस हजार जन्म पूर्व के पितर विष्णु लोक को जाते हैं। यज्ञ और तपादि से भी दुर्लभ एवं अक्षय फल इस एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है।

नाना प्रकार के तीथों में जाने एवं नाना प्रकार के देवताओं के दर्शन करने से, गोदान, भूदान, अन्नदान, कन्यादान इत्यादि इत्यादि दानों के करने से जो पुण्य फल प्राप्त होता है वह एकमात्र प्रबोधिनी के व्रत से मिल जाता है। अस्तु समस्त कृत्यों को त्याग यत्नपूर्वक कार्तिक मास की प्रबोधिनी एकादशी का व्रत रखना चाहिये। इस व्रत को करने वाला ज्ञानी, तपस्वी और जितेन्द्रिय है क्योंकि यह एकादशी भगवान् विष्णु को अत्यन्त प्रिय है। अस्तु इसको धारण करने वाले आवागमन के चक्कर से मुक्त हो जाते हैं। उसके कायिक वाचिक एवं मानसिक सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

एकादशी में भगवत् नाम पर किया हुआ दान पुण्य और शुभ कार्य अटल और अक्षय होता है। इस व्रत के करने वाले पर भगवत्- कृपा होती है और वह विश्व में विदित हो जाता है। जीवन के समस्त पापों को यह हरि प्रबोधिनी नष्ट करती है। इसके व्रत का पुण्य फल महान् और अक्षय है। जो लोग प्रबोधिनी का व्रत कर भगवान् विष्णु की कथा को सुनते हैं उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। कार्तिक की प्रबोधिनी एकादशी का व्रत भगवत् कथा सुनकर ब्राह्मण को दक्षिणा एवं दान देने से सप्त दीप एवं सप्त वसुन्धरा दान देने से भी सहस्रों गुणा अधिक फल होता है। नारदजी ने ब्रह्मा से इतनी कथा सुन प्रश्न किये कि हे प्रभो ! कृपा कर इस व्रत का विधान वर्णन कीजिये। ब्रह्मा जी बोले-एकादशी को निन्द्रा त्याग ब्रह्म मुहूर्त में नित्य कर्म से निवृत्त हो कुआँ, तालाब अथवा नदी में स्नान कर भगवान् का स्मरण कर संकल्प करे कि मैं आज एकादशी का व्रत रखकर भूखा रहूँगा आप मेरी एवं मेरे संकल्प की रक्षा कीजिये। इस प्रकार संकल्प कर व्रत रख विष्णु भगवान् की समुचित पूजा कर भगवान् के समीप भजन एवं कीर्तन करे तथा रात को जागे कंजूसी को छोड़ नाना प्रकार के सुगन्धित पुष्पों एवं सुस्वादु फलों से भगवान् का पूजन करे। शंख द्वारा भगवान् को अर्थ दें।

अगस्त पुष्पों द्वारा पूजन करने वाले एवं बिल्व पत्रों से पूजन करने वाले अनायास ही मुक्ति लाभ करते हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रबोधिनी नाम एकादशी का व्रत कर भगवान् का पूजन तुलसी दलों द्वारा करने से सहस्र जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। कार्तिक मास में तुलसी बिरवा लगाने, सींचने, सेवा करने तथा दर्शन करने मात्र से जन्म-जन्मान्तर के पाप नष्ट हो जाते हैं। जिनके घर में तुलसी वृक्ष उगता पलता और फलता तथा फूलता है, उसके कुल में जो उत्पन्न हो गये और जो हैं एवं जो होंगे वे समस्त विष्णु लोक के वासी होंगे। कदम्ब पुष्पों द्वारा भगवान् का पूजन करने वाले यम यातना को नहीं भोगते क्योंकि भगवान् विष्णु कदम्ब के फूलों को देखते ही प्रसन्न हो जाते हैं और जो लोग श्रद्धा भक्ति समेत गुलाब का पुष्प समर्पित कर भगवान् का पूजन करते हैं वे अनायास ही मुक्ति को प्राप्त कर लेते हैं और जो मौलश्री और अशोक के पुष्पों को अर्पण कर भगवान् की पूजा और ध्यान करते हैं वे संसार में जब तक सूर्य और चन्द्रमा अवस्थित हैं तब तक शोक रहित हो आनन्द पूर्वक निवास करते हैं।

श्वेत एवं लाल कनेर पुष्पों द्वारा पूजा करने वालों से भगवान् अत्यन्त ही प्रसन्न होते हैं। तुलसी दल द्वारा भगवान् की पूजा करने वाले से भगवान् सहस्रों गुणा अधिक प्रसन्न होते हैं। जो प्रयत्नशील प्राणी सभी पत्र द्वारा इस एकादशी में भगवान् की पूजा करता है वह यमराज के पाप से मुक्त हो जाता है तथा चम्पक पुष्पों द्वारा भगवान् की पूजा करने वाला जन्म मरण से रहित हो जाता है। स्वर्ण निर्मित केतकी पुष्प द्वारा भगवान् की पूजा करने से कोटानुकोटि जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। श्वेत, पीत एवं लाल कमल, सुगन्धित फूल लाकर जो भगवान् को अर्पण करत् हैं वह श्वेत, पीत एवं लाल द्वीपों में वास करते हैं। इस प्रकार भगवान् का पूजन कर रात्रि जागरण कर प्रातःकाल बहने वाली नदी में स्नान कर प्रातः की समस्त क्रिया वहीं समाप्त कर घर में आकर फिर भगवान् की पूजा करे और व्रत की पूर्ति के लिये ब्राह्मण भोजन कराये और ब्राह्मणों को दक्षिणा दे मीठे वचनों से उनकी विनय कर गोदान, अन्नदान इत्यादि दे उन्हें सन्तुष्ट करे।

भगवान् को प्रसन्न करने के लिये ब्राह्मणों को भूयसी दक्षिणा दे उन्हीं के सामने व्रत को समाप्त कर पारण करे और यथाशक्ति ब्राह्मणों को दक्षिणा दे। रात में कथा सुनने वाले एवं कीर्तन करने वाले ब्राह्मणों को भली प्रकार सुवर्ण युक्त बैलों की जोड़ी का दान करें। धात्री से स्नान करने वालों को दही और मधु दान करना चाहिये। तेल के स्थान में घी और घी के स्थान में दूध का दान करना चाहिये। भूमि पर शयन करने वालों को शय्या दान करना चाहिये। मौन व्रत धारण करने वालों को सोना और तिल दान देना चाहिये। केश धारण करने वालों को दर्पण दान करना चाहिये। जूता न पहिनने वालों को जूता दान करना चाहिये।

देव मन्दिर में दीपक जलाने वालों को सोने एवं ताँबे का दीपक घृत सहित दान करना चाहिये। जो दिन के अन्त में रस भोजन करने वाले हैं उनको स्वर्ण एवं वस्त्रालंकार समेत आठ घड़े दान करना चाहिये यदि पूर्व कथित दान करने की शक्ति न हो तो ब्राह्मणों को वचनों द्वारा संतुष्ट कर देना चाहिये। चतुर्मास में त्यागी हुई वस्तुओं को पुनः ग्रहण करने में उपरोक्त रीत्यानुसार दान करना चाहिये। विघ्न रहित चतुर्मास व्रत पूरा करने वालों को सम्पर्ण ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं और जो व्रत को नहीं पूर्ण कर सकते वह नरकगामी होते हैं।

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