हनुमान जी ने क्यों लिया वानर अवतार?

Hanuman Jayanti 2025: भगवान शिव के ग्यारहवें अवतार हनुमान को कैसे मिला वानर रूप, जानिए पौराणिक कथा 

हनुमान जयंती पर देशभर में भक्त बजरंगबली की पूजा-अर्चना में जुटे हैं। इस बार यह पर्व 12 अप्रैल 2025, शनिवार को मनाया जाएगा। कहा जाता है कि हनुमान जी का पूजन अगर विधिवत किया जाए, तो जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार कहे जाने वाले हनुमान जी ने वानर रूप में जन्म क्यों लिया? इसके पीछे एक बेहद रोचक पौराणिक कथा जुड़ी है।

पूर्वजन्म में अप्सरा थीं माता अंजनी

मान्यताओं के अनुसार, हनुमान जी की माता अंजनी अपने पूर्व जन्म में इंद्रलोक की एक सुंदर अप्सरा थीं, जिनका नाम पुंजिकस्थला था। वे बेहद आकर्षक और चंचल स्वभाव की थीं। एक बार उनकी चंचलता उन्हें भारी पड़ गई। उन्होंने ध्यान में लीन एक ऋषि का अपमान कर दिया। इस पर ऋषि ने उन्हें श्राप दिया कि अगले जन्म में उन्हें वानर योनि में जन्म लेना होगा।

पुंजिकस्थला ने जब क्षमा याचना की, तो ऋषि ने कहा- तुम्हारा वानर रूप अत्यंत तेजस्वी होगा और तुम एक यशस्वी पुत्र को जन्म दोगी, जो साक्षात शिव का अंश होगा।

इंद्रदेव से मिला आश्वासन

कुछ समय बाद इंद्रदेव ने पुंजिकस्थला को वरदान मांगने को कहा। तब उन्होंने ऋषि के श्राप से मुक्ति की प्रार्थना की। इंद्रदेव ने कहा- तुम्हें धरती पर वानरी स्वरूप में जन्म लेना होगा, जहां तुम्हारा विवाह एक ऐसे राजकुमार से होगा जो स्वयं भी वानर होगा। तुम शिव के एक अंश को जन्म दोगी और तुम्हें श्राप से मुक्ति मिल जाएगी।

वानरराज केसरी से विवाह

धरती पर जन्म लेने के बाद पुंजिकस्थला ने अंजनी के रूप में वानरराज केसरी को पति रूप में प्राप्त किया। एक दिन जब अंजनी ने केसरी को देखा तो वह आकर्षित हो उठीं, लेकिन जैसे ही उनका प्रेम जागा, उनका मुख वानर जैसा हो गया। केसरी ने उन्हें बताया कि वे भी इच्छानुसार मानव और वानर रूप धारण कर सकते हैं। दोनों ने विवाह कर लिया।

तपस्या से प्रसन्न हुए वायु देव और शिव जी

विवाह के बाद संतान प्राप्ति की इच्छा से अंजनी ने मातंग ऋषि के मार्गदर्शन में नारायण पर्वत पर 12 वर्षों तक कठोर तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर वायु देव ने वरदान दिया कि तुम्हें बलवान, वेदों का ज्ञाता, और दिव्य तेज से युक्त पुत्र प्राप्त होगा।

इसके बाद अंजनी ने भगवान शिव की तपस्या की और उनसे निवेदन किया कि वे उनके गर्भ से बाल रूप में जन्म लें, जिससे वह ऋषि के श्राप से मुक्ति पा सकें। शिव जी ने अंजनी को वरदान दिया और उनके गर्भ से हनुमान जी का जन्म हुआ।

हनुमान जी को इसलिए कहा जाता है “आंजनेय”

अंजनी के पुत्र होने के कारण हनुमान जी को आंजनेय भी कहा जाता है। उनका वानर रूप केवल एक संयोग नहीं, बल्कि कई देवताओं की कृपा और एक श्राप की परिणति था। यह रूप उन्होंने त्रेता युग में भगवान राम की सेवा और धर्म की रक्षा के लिए धारण किया।


........................................................................................................
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे (Namaste Sada Vatsale Matruṛbhume)

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम् ।

परमेश्वर स्तुति स्तोत्रम् (Parameshvar Stuti Stotram)

त्वमेकः शुद्धोऽसि त्वयि निगमबाह्या मलमयं

माघ गुप्त नवरात्रि कवच पाठ

हिंदू धर्म में नवरात्रि का त्योहार देवी माँ के विभिन्न रूपों की पूजा करने हेतु मनाया जाता है। यहां, नवरात्रि शब्द में 'नव' का अर्थ नौ और 'रात्रि' का अर्थ है रातें। इन नौ रातों में देवी मां के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। हालांकि, 4 नवरात्रियों में से एक माघी नवरात्रि गृहस्थ लोगों के लिए नहीं होती है।

बनवारी रे! जीने का सहारा तेरा नाम रे (Banwari Re Jeene Ka Sahara Tera Naam Re)

बनवारी रे,
जीने का सहारा तेरा नाम रे,

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।