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सनातन धर्म में दिवाली का पर्व विशेष महत्व रखता है। यह पर्व हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं, और जो कोई उनकी सच्चे मन से आराधना करता है, उस पर वे अपनी कृपा बरसाती हैं।
दिवाली के दिन कई लोग व्रत रखते हैं और शाम को व्रत का पारण करते हैं। इस दिन महालक्ष्मी की पौराणिक कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। तो आइए, इस आर्टिकल में इस कथा को विस्तार से जानते हैं।
प्राचीन समय में एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसकी एक बेटी थी, जो रोजाना पीपल देवता की पूजा करती थी। एक दिन मां लक्ष्मी ने उस लड़की को दर्शन दिए और कहा, "मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ, क्या तुम मेरी सहेली बनोगी?"
लड़की बोली, "क्षमा कीजिए, मैं पहले अपने माता-पिता से पूछकर बताऊंगी।" माता-पिता की आज्ञा लेने के बाद वह महालक्ष्मी की सहेली बन गई। लक्ष्मी जी भी उससे बहुत प्रेम करने लगीं।
एक दिन महालक्ष्मी जी ने लड़की को भोजन के लिए आमंत्रित किया। जब लड़की भोजन करने गई, तो लक्ष्मी जी ने उसे सोने-चांदी के बर्तनों में खाना परोसा, सोने की चौकी पर बैठाया और बहुमूल्य वस्त्र ओढ़ने को दिए।
इसके बाद महालक्ष्मी जी ने लड़की से कहा, "मैं भी कल तुम्हारे यहाँ भोजन के लिए आऊंगी।" लड़की ने सहमति दे दी और अपने माता-पिता को यह बात बताई। माता-पिता इस खबर से बहुत खुश हुए, लेकिन लड़की चिंतित हो गई।
लड़की को उदास देखकर उसके माता-पिता ने कारण पूछा। उसने बताया, "मां लक्ष्मी जी का वैभव बहुत बड़ा है, मैं उन्हें कैसे संतुष्ट कर सकूंगी?"
पिता ने समझाया, "बेटी, श्रद्धा और प्रेम से उन्हें जो भी खिला सको, वही पर्याप्त होगा।"
तभी अचानक एक चील उड़ते हुए आई और किसी रानी का नौलखा हार वहीं गिरा गई। यह देखकर लड़की बहुत प्रसन्न हो गई। उसने वह हार थाल में रखकर एक सुंदर वस्त्र से ढक दिया।
अगले दिन महालक्ष्मी जी और श्री गणेश जी वहां पहुंचे। लड़की ने उन्हें सोने की चौकी पर बैठने को कहा, लेकिन महालक्ष्मी जी ने संकोच करते हुए कहा, "इस पर तो राजा-रानी बैठते हैं, हम कैसे बैठ सकते हैं?"
लड़की के आग्रह करने पर लक्ष्मी जी और गणेश जी ने प्रेमपूर्वक भोजन किया। लक्ष्मी जी की कृपा से साहूकार का घर सुख-समृद्धि से भर गया, और उसके घर में कभी किसी चीज की कमी नहीं हुई।
एक कथा के अनुसार, कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान श्रीराम 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर और रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे। उनके आगमन की खुशी में अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया। तभी से दिवाली का पर्व मनाया जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, नरकासुर नामक राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवताओं और साधु-संतों को बहुत परेशान कर रखा था। उसने 16,000 स्त्रियों को बंदी बना लिया था।
भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर सभी स्त्रियों को मुक्त कराया। इसके बाद, लोगों ने अमावस्या की रात दीप जलाकर उत्सव मनाया, जो आगे चलकर नरक चतुर्दशी और दिवाली के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इंद्र ने स्वर्ग को पुनः प्राप्त किया। इस सुखद घटना की खुशी में देवताओं ने दीप जलाए और दिवाली मनाई।
एक अन्य कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान क्षीरसागर से देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं। उन्होंने भगवान विष्णु को अपने पति के रूप में स्वीकार किया। तभी से दिवाली को लक्ष्मी पूजन का विशेष पर्व माना जाता है।
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