धनतेरस की पौराणिक कथा

Dhanteras Katha: क्यों मनाया जाता है धनतेरस का त्योहार? जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा 


धनतेरस का पर्व प्रति वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अपने हाथ में अमृत से भरा कलश लेकर प्रकट हुए थे। इस कारण इस दिन को धनतेरस कहा जाता है। इस दिन सोना-चांदी और बर्तन खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन की गई खरीदारी तेरह गुना बढ़ती है। तो आइए, इस लेख में धनतेरस से जुड़ी पौराणिक कथा को विस्तार से जानते हैं।

धनतेरस की पौराणिक कथा


पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु मृत्युलोक (पृथ्वी) की ओर आ रहे थे। तभी माता लक्ष्मी ने उनके साथ जाने की इच्छा व्यक्त की। भगवान विष्णु ने कहा कि यदि आप मेरे सभी आदेशों का पालन करेंगी, तभी आप मेरे साथ चल सकती हैं। माता लक्ष्मी ने उनकी बात मान ली और वे पृथ्वी लोक पर आ गईं।

कुछ समय बाद, जब वे एक स्थान पर पहुँचे, तो भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा, "जब तक मैं वापस न आऊं, तब तक आप यहीं रहें।" इतना कहकर भगवान विष्णु दक्षिण दिशा की ओर चले गए।

किन्तु माता लक्ष्मी के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या है। इस जिज्ञासा के कारण वे भगवान विष्णु की आज्ञा का उल्लंघन कर उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं।

आगे जाकर उन्हें सरसों के खेत दिखाई दिए। वहाँ उन्होंने सरसों के फूलों से अपना श्रृंगार किया। फिर वे गन्ने के खेत में गईं और गन्ने तोड़कर उसका रस चूसने लगीं।

इसी बीच भगवान विष्णु वहाँ वापस आ गए और माता लक्ष्मी को आज्ञा भंग करते देख क्रोधित हो गए। क्रोधित विष्णुजी ने माता लक्ष्मी को श्राप दिया, "मैंने आपको मना किया था, फिर भी आपने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया। इस अपराध के कारण अब आपको 12 वर्ष तक एक किसान के घर में रहकर उसकी सेवा करनी होगी।" इतना कहकर भगवान विष्णु क्षीर सागर लौट गए।

इसके बाद माता लक्ष्मी किसान के घर रहने लगीं। उनके रहने से किसान का घर धन-धान्य से भर गया। जब 12 वर्ष पूरे हुए और भगवान विष्णु पुनः आए, तो किसान ने माता लक्ष्मी को जाने से रोक लिया।

तब माता लक्ष्मी ने किसान से कहा, "धनतेरस के दिन अपने घर की अच्छी तरह से साफ-सफाई करना, रात में घी का दीपक जलाना और तांबे के कलश में रुपए रखकर मेरी पूजा करना। ऐसा करने से मैं पूरे वर्ष तुम्हारे घर वास करूंगी।"
मान्यता है कि तभी से धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी की पूजा की परंपरा शुरू हुई।

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कैसी यह देर लगाई दुर्गे... (Kaisi Yeh Der Lagayi Durge)

कैसी यह देर लगाई दुर्गे, हे मात मेरी हे मात मेरी।
भव सागर में घिरा पड़ा हूँ, काम आदि गृह में घिरा पड़ा हूँ।

मेरे सोये भाग जगा भी दो(Mere Soye Bhag Jga Bhi Do Shiv Damaru Wale)

मेरे सोये भाग जगा भी दो,
शिव डमरू वाले,

सूर्य मंत्र

ॐ सूर्याय नमः
ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकरः

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