छठ पूजा कथा

कैसे हुई छठ पूजा की शुरूआत? यहां जानें छठ पूजा से जुड़ी प्रचलित कथा औऱ परंपरा 



छठ पूजा एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। इस दौरान सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा अर्चना की जाती है। छठी मैया को सूर्यदेव की बहन माना जाता है और इस पर्व पर दोनों की पूजा अर्चना की जाती है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है, जिसमें सात्विक भोजन का महत्व है। साथ ही पूजा की विधि भी विशेष है, जिसमें पहले दिन खरना के साथ शुरुआत होती है। दूसरे दिन भी खरना मनाया जाता है। इसके बाद तीसरे दिन सूर्य को संध्या अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। इस महापर्व के पीछे कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं जो इसके महत्व को और भी बढ़ाती हैं। आइये जानते हैं इस महापर्व से जुड़ी प्रचलित कथाओं के बारे में। 



मार्कण्डेय पुराण में छठी मैय्या का महत्व


मार्कण्डेय पुराण में छठी मैय्या के महत्व का वर्णन मिलता है। जिसमें उन्हें प्रकृति की अधिष्ठात्री देवी और भगवान सूर्य की बहन बताया गया है। छठी मैय्या को संतान सुख, संतान को दीर्घायु और सौभाग्य प्रदान करने वाली माता माना जाता है। जब बच्चे के जन्म के छठे दिन उसका छठी पूजन होता है तब इन्हीं माता का स्मरण किया जाता है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, छठी मैय्या की कृपा से न केवल संतान को हर तरह की सुख सुविधा प्राप्ती होती है बल्कि उसके जीवन में आने वाले कष्टों का अपने आप ही निवारण हो जाता है। यही कारण है कि छठी मैय्या की पूजा और व्रत करने का विशेष महत्व है।



छठ पूजा कथा 


छठ पूजा से जुड़ी कई कथाएं - 


1.  जब राजा प्रियंवद और मालिनी पर हुई छठी मैया की कृपा 


प्राचीन समय में राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी थे। जो संतान प्राप्ति के लिए तरसते थे। उन्होंने कई उपाय किए लेकिन नतीजा कुछ न निकला। एक दिन वे महर्षि कश्यप के पास गए और संतान प्राप्ति का उपाय पूछा। महर्षि ने यज्ञ का आयोजन करवाया और यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा की पत्नी को खाने के लिए दी। खीर के प्रभाव से रानी गर्भवती हो गई और 9 महीने बाद उन्हें पुत्र हुआ लेकिन वह मृत पैदा हुआ। राजा और उनकी पत्नी दुखी हो गए। राजा अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने का प्रयास करने लगे। उसी समय देवी प्रकट हुईं और राजा से कहा- "मैं ब्रह्मा की पुत्री देवसेना हूं, जिसे षष्ठी कहा जाता है।" देवी ने राजा को बताया कि अगर वह विधिपूर्वक उनकी पूजा करेंगे और दूसरों को भी प्रेरित करेंगे, तो उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। राजा ने देवी के कहे अनुसार कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को व्रत रखकर देवी षष्ठी की पूजा की और बाकी लोगों को भी षष्ठी देवी की पूजा करने के लिए प्रेरित किया। षष्ठी देवी की पूजा के फलस्वरूप राजा की पत्नी रानी मालिनी एक बार फिर से गर्भवती हुईं और 9 महीने बाद उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। मान्यता है कि इसके बाद से ही कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि पर छठ पूजा और व्रत करने की शुरुआत हुई।



2. कर्ण ने की अर्घ्य देने की शुरूआत 


एक अन्य कथा अनुसार, छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की थी। कर्ण, जो बिहार के अंग प्रदेश (वर्तमान भागलपुर) के राजा थे। सूर्य और कुंती के पुत्र थे। सूर्यदेव की कृपा से कर्ण को दिव्य कवच और कुंडल प्राप्त हुए थे, जो हर समय उनकी रक्षा करते थे। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। यह मान्यता छठ पर्व के महत्व और इसके पीछे की पौराणिक कथाओं को दर्शाती है।



3. द्रौपदी की छठ पूजा की कहानी


एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल में द्रौपदी ने अपने परिवार की सुख-शांति और रक्षा के लिए छठ पर्व की शुरुआत की थी। जब पांडवों ने जुए में अपना सारा राजपाट गंवा दिया तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा और अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए प्रार्थना की। इसके बाद उनकी प्रार्थना के फलस्वरूप ही पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल पाया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है और इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना को विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। यह कथा छठ पर्व के महत्व और इसके पीछे की पौराणिक मान्यताओं को दर्शाती है।



4. माता सीता की छठ पूजा की कथा


रामायण में भी छठ पूजा का वर्णन मिलता है, जो इसके महत्व को दर्शाता है। भगवान राम जो सूर्यवंशी कुल के राजा थे। उनके आराध्य एवं कुलदेवता सूर्य देव थे। इसी कारण से राम राज्य की स्थापना से पूर्व भगवान राम ने माता सीता के साथ कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन छठ पर्व मनाते हुए। भगवान सूर्य की पूजा विधि विधान से की थी। एक पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि मुद्गल ने माता सीता को छठ व्रत करने को कहा था। आनंद रामायण के अनुसार, जब भगवान राम ने रावण का वध किया। तब रामजी पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा। इस हत्या से मुक्ति पाने के लिए कुलगुरू मुनि वशिष्ठ ने ऋषि मुद्गल के साथ राम और सीता को भेजा था। भगवान राम ने कष्टहरणी घाट पर यज्ञ करवा कर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति प्राप्त की, वहीं माता सीता को आश्रम में ही रहकर कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को व्रत करने का आदेश दिया। मान्यता है कि आज भी मुंगेर मंदिर में माता सीता के पैर के निशान मौजूद हैं। यह कथा छठ पूजा के महत्व और इसके पीछे की पौराणिक मान्यताओं को दर्शाती है।


........................................................................................................
Gokul Ki Har Gali Mein Mathura Ki Har Gali Me Lyrics (गोकुल की हर गली मे, मथुरा की हर गली मे)

गोकुल की हर गली मे,
मथुरा की हर गली मे ॥

चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है भजन (Chalo Bulawa Aaya Hai Mata Ne Bulaya Hai Bhajan)

नवदुर्गा, दुर्गा पूजा, नवरात्रि, नवरात्रे, नवरात्रि, माता की चौकी, देवी जागरण, जगराता, शुक्रवार दुर्गा तथा अष्टमी के शुभ अवसर पर गाये जाने वाला प्रसिद्ध व लोकप्रिय भजन।

बालाजी म्हारा कष्ट निवारो जी: भजन (Balaji Mhara Kasht Niwaro Ji)

बालाजी म्हारा कष्ट निवारो जी,
दुखड़ा का मारया हाँ,

राम नाम के साबुन से जो(Ram Naam Ke Sabun Se Jo)

राम नाम के साबुन से जो,
मन का मेल भगाएगा,

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

यह भी जाने